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हुए हैं, वे सब भेद विज्ञान के द्वारा हुए हैं और जो बद्ध हैं वे भेद विज्ञान के अभाव में हैं। जिसमें आत्मा के प्रति गहरी निष्ठा जाग जाती है, उसे दुनिया भी नहीं झुका सकती। उसे मौत का भय नहीं सताता।'
एक भाई बोला-'मुझे मरने से डर बहुत लगता है। जब यमुना के पुल पर जाता हूं तब मन में आता है कि पुल गिर न जाए।' मैंने कहा-'तुम दुबले-पतले हो, तुम्हारे वजन से यह पुल कैसे गिर जाएगा, जबकि भारी ट्रकें भी इस पर चलती हैं?' वह फिर बोला-'घर से बाहर निकलता हूं तो मन में आता है, मोटर के नीचे न आ जाऊं। रात को सोता हूं तो मन में आता है, कहीं छत न गिर जाए।'
कायर आदमी दिन में सौ बार मरता है। मौत का भय उसे होता है, जिसे शरीर का मोह है। जिसने शरीर को भिन्न मान लिया, उसे मौत का भय नहीं सताता।
सम्राट सिकन्दर यूनान जाने लगा तो सोचा, एक योगी को साथ लेकर जाऊंगा जो यूनान में धर्म की शिक्षा देगा। एक तपस्वी सूर्य की ओर ध्यान किए बैठा था। सम्राट् पास जाकर खड़ा हो गया। सिकन्दर ने थोड़ी प्रतीक्षा की, फिर कहा-'देखिए, कौन खड़ा है सामने?' तपस्वी ने आंखे खोली और कहा-'हट जाओ-सूर्य का ताप आ रहा है, उसमें बाधक मत बनो।' सिकन्दर बोला-'सामने कौन खड़ा है, पता है आपको? सम्राट सिकन्दर है, जिसने सारे विरोधियों को कुचल दिया है। क्या आपको भय नहीं है?' तपस्वी बोला-'सम्राट् मेरा क्या कर सकता है?' वह मारने से अधिक क्या कर सकता है? मरने से मेरा अपना क्या जाता है?' सिकन्दर कुछ नहीं बोला
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