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धार्मिक की कसौटी
धार्मिक की पहली कसौटी है सहिष्णुता, परिस्थिति को सहने की क्षमता। वह कभी नहीं कहता कि मेरे पर दुःख न आए। जो यह मांग करता है, वह कर्तृत्व की हत्या करता है। क्या प्रकृति का नियम बदल जाए? क्या कर्म का नियम बदल जाए? धार्मिक कभी सत्य को उलटना नहीं चाहता।
दुनिया का नाम है द्वन्द्व। संस्कृत में द्वन्द्व शब्द के दो अर्थ होते हैं- 'दो' और 'लड़ाई'। दो का होना ही लड़ाई है। इस द्वन्द्वात्मक सृष्टि में जन्म ले और सोचे-दुःख, प्रतिकूल परिस्थिति
और कठिनाई न आए, यह कैसे हो सकता है? ऐसा सोचना निरी मूर्खता है।
धार्मिक में भी कठिनाई आए तो धर्म करने का लाभ क्या है? यह प्रश्न हो सकता है? इसका उत्तर बहुत साफ है-धर्म से दुःख को सहने की शक्ति आती है। धार्मिक कष्ट में रोता, विलपता नहीं है, अपितु आनन्द से उसे झेल लेता है। रोग धर्म करने वालों को भी आता है और न करने वालों को भी आता है। बुढ़ापा धर्म करने वालों को भी आता है और न करने वालों को भी आता है। विघ्न धर्म करने वालों को भी आता है और न करने वालों को भी आता है। मौत धर्म
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धर्म के सूत्र
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