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सुख क्या है ? (२)
'हिंसका अप्युपकृता, आश्रिता अप्युपेक्षिताः । इदं चित्रं चरित्रं ते, के वा पर्यनुयुञ्जताम् ॥'
भगवान की स्तुति में कहा गया हैं- जो हिंसक थे, उन पर आपने दया की । जो अधम, डाकू और चोर थे, उन पर कृपा की तथा आश्रितों की उपेक्षा की । यह विचित्र है आपका बरताव । यह कवि की अपनी कल्पना है, अपना विचार है । महापुरुषों का चरित्र विचित्र होता है । साधारण उन्हें समझ नहीं पाता । गूढ़ तत्त्व को समझना कठिन है ।
सारी प्रवृत्तियों के पीछे दो प्रेरणाएं होती हैं- दुःख की मुक्ति और सुख की प्राप्ति। इसके बिना कोई भी प्रवृत्ति नहीं होती । कोई कहे मुझे सुख नहीं पाना है, उसे प्रवृत्ति की आवश्यकता नहीं है । मनुष्य की प्रवृत्ति आदि से अन्त तक दुःख - निवृत्ति या सुख की प्राप्ति के लिए होती है। सुख क्या है? यह पहले बताया जा चुका है। हर आदमी में संस्कार होते हैं, वे ही उसे दुःखी बनाते हैं। संस्कार क्षीण हो गया, दुःख मिट गया । पुराने जमे हुए संस्कारों व वासनाओं को क्षीण करना सुख है उस व्यक्ति की मनोदशा कैसी होती है, जिस पर कर्ज होता है | कर्जदार सोता है तो सिर पर भार लेकर, जागता है
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सुख क्या है ? (१)
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