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जाएगा। घाटा लग जाएगा। आप प्रार्थना करें, वर्षा न आए।'
फिर पिता दूसरी लड़की के पास गया। वही प्रश्न किया-'कैसा हाल है?' 'सब कुछ ठीक है, किन्तु ।' 'फिर किन्तु क्या है?' 'पहले वर्षा हुई थी, बाजरी आदि हो रही है। ये बादल मंडारा रहे हैं, लेकिन बरस नहीं रहे हैं। आप प्रार्थना करें, ये बरस जाएं। पिता के लिए दोनों ओर समस्या है।
इसका नाम है हितों का द्वन्द्व, हितों का संघर्ष। आज के समाज में मजदूर का हित अलग है, मालिक का हित अलग है। मिल-मालिक चाहता है थोड़ा दूं और अधिक काम लूं। मजदूर चाहता है कि काम कम हो और दाम अधिक मिले। दोनों ओर विचारों का द्वन्द्व है।
सिद्ध पुरुष आया। सब लोग गए। परिचय हुआ। आप क्या देते हैं? एक आदमी को एक वरदान। जमींदार ने मांगा-'भगवन्! एक वरदान मुझे दीजिए। मेरा यह ठाटबाट, नौकर-चाकर, भूमि-ऐश्वर्य जो है, वह बना रहे। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।' सिद्धपुरुष ने कहा-'तथास्तु।' फिर मजदूर ने वरदान मांगा-'भगवन्! एक वरदान मुझे भी दीजिए-मनुष्य मनुष्य का गुलाम न रहे।' सिद्धपुरुष बोला-'तथास्तु।' फिर जमींदार खड़ा हुआ-'भगवन्! यदि मनुष्य मनुष्य का गुलाम नहीं रहा तो मेरे वरदान का अर्थ क्या होगा?'
यह मनुष्य का ऐश्वर्य किसके कंधे पर चलता है? दूसरे की गुलामी पर चलता है। हितों का द्वन्द्व पहले भी था, आज भी है।
पिता ने सोचा-अब क्या करूं, दोनों में विरोध है। एक पुत्री चाहती है, बादल न बरसे। दूसरी चाहती है, बादल बरसे।
१०२ म
धर्म के सूत्र
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