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शिष्य किसके होते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में गुरुदेव कहते हैं-'सीसस्स हुंति सीसा, न हुंति सीसा असीसस्स' जो शिष्य होता है, उसी के शिष्य होते हैं। गुरु के शिष्य नहीं होते। जो कभी शिष्य नहीं रहा, वह शिष्य नहीं रख सकता। उसे अनुभव ही नहीं होता कि अनुशासन कैसे निभवाया जाता है।
जो अनुशासन में रह गया है, वही अनुशासन कर सकता है। जो सास बहू बनकर न रही हो वह अपनी बहू को नहीं रख सकती। सास हुक्म चलाती है, पर स्वयं ने नहीं सीखा कि हुक्म कैसे पाला जाता है। गुरुदेव स्वयं कठोर अनुशासन में रहे हैं। उन्होंने हमारे सामने कभी हंसी-मजाक नहीं किया। हमें कहते-अभी तुम पांच-सात वर्ष बातें मत करो। अभी बातोड़ी बन जाओगे तो फिर जीवनभर दूसरे के अंकुश में रहना पड़ेगा। नहीं तो तुम स्वयं स्वतंत्र हो जाओगे। यह अनुशासन जीवन की कला है। जो अनुशासित हो जाता है, वह कई अच्छी बातें ग्रहण कर लेता है। आज दुनिया में ध्वंस क्यों चल रहा है? इसलिए कि प्रारंभ में ऐसे संस्कारों का निर्माण नहीं हुआ, जिससे मनुष्य निर्माण कर सके। एक घड़ा दो कंकड़ों से फूट सकता है, परन्तु उसे बनाने में समय लगता है, शक्ति लगती है।
महात्मा बुद्ध के पास डाकू आए। बुद्ध ने पूछा- कौन हो?' 'हम डाकू हैं।' 'कैसे आए?' 'आपके पास आए हैं।' 'डाका क्यों डालते हो?' 'समाज की विवशता है।'
डाकुओं का जीवन सुखी जीवन नहीं है, परन्तु बाध्यता के कारण वे डाकू बन जाते हैं। डाकुओं में पढ़े-लिखे, वकील, डॉक्टर और सैनिक होते हैं। समाज की दुर्व्यवस्था इनको डाकू बना देती है। बुद्ध ने सोचा-यह समाज के विघटन का काम
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