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स्वभाव-परिवर्तन
एक विदेशी व्यक्ति भारत के साधक के पास आया और बोला- 'मैं यहां रहना चाहता हूं।' साधक ने उत्तर दिया- 'रह सकते हो ।' विदेशी ने आगे कहा- 'मैं बहुत जगह जाकर आया हूं। मेरी आदत है कि मुझसे कठोरतम काम कराया जाए तो मैं रहता हूं।' साधक ने कहा - 'ठीक है ।'
साधक ने पहला प्रश्न किया- 'किसी के गाली देने पर क्रोध करना कठिन है या क्षमा करना कठिन है?' 'क्षमा करना कठिन है ।' 'मैं पहला काम यह कहता हूं कि किसी के गाली देने पर गुस्सा न करो।'
साधक ने दूसरा प्रश्न किया- 'मन की इच्छा के अनुसार चलना कठोर है या दूसरे के अनुशासन में चलना ?' उसने उत्तर दिया - 'दूसरे के अनुशासन में चलना कठोर काम है।' साधक ने कहा - 'आज से तुम पूर्ण रूप से मेरे अनुशासन में चलोगे ।' ये दो कार्य मैं तुमको देता हूं।' वह भी बात का पक्का था । उनका बराबर पालन किया। छह मास में जीवन बदल गया । आगे चलकर वह साधक बन गया ।
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सबके लिए अनुशासन में रहना कठोर होता है । यदि रह जाएं तो सही अर्थ में आदमी बन जाते हैं
६६ धर्म के सूत्र
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