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नहीं, क्रिया है। दोनों को जीना होता है। इनका सैद्धान्तिक पक्ष उतना कारगर नहीं होता, जितना इनका क्रियात्मक पक्ष कारगर होता है। सिद्धान्त केवल मस्तिष्क को छूता है, क्रिया हृदय का स्पर्श करती है, परिवर्तन वहीं घटित होता है।
परिवर्तन का घटक धर्म ६५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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