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६. मूल्य-परिवर्तन
भगवान् तीस वर्ष तक घर में रहे। साढ़े बारह वर्ष तक साधना करते रहे। तैंतालीसवें वर्ष में केवली हो गए। केवली होने के बाद भगवान् ने शाश्वत धर्म की व्याख्या की। जन-जन का उद्धार और जनता की जिज्ञासा का समाधान किया।
भगवान् वैशाली से विहार कर कौशाम्बी गए। महाराज शतानीक की बहिन जयंती ने भगवान् से कुछ प्रश्न पूछे
'भंते! जीवों का सोना अच्छा है या जागना अच्छा है?' 'आर्ये! सोना भी अच्छा है, जागना भी अच्छा है।' 'भंते! यह कैसे?'
'आर्ये! अधर्मनिष्ठ जीव सोते रहते हैं तब वे दूसरे जीवों को पीड़ित करने से बच जाते हैं, इसलिए उनका सोना अच्छा है। धर्मनिष्ठ जीव जागते हैं तब धर्म का अभ्यास करते हैं। वे दूसरे को पीड़ित नहीं करते, इसलिए उनका जागना अच्छा है।'
'भंते! जीवों का दुर्बल होना अच्छा है या सबल होना अच्छा
'आर्ये! दुर्बल होना भी अच्छा है और सबल होना भी अच्छा
'भंते! यह कैसे?
'आर्ये! अधार्मिक मनुष्य अनैतिक साधनों से जीविका का अर्जन करते हैं। ऐसे मनुष्यों का दुर्बल होना अच्छा है। धार्मिक मनुष्य नैतिक साधनों से जीविका का अर्जन करते हैं। ऐसे मनुष्यों का सबल होना अच्छा है।'
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