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कैवल्य और धर्मोपदेश/४३
० भय मत करो। ० हास्य-कुतूहल मत करो।
असत्य के सब प्रसंगों से बचो। सत् (जो है उसी) का ध्यान करो। सत् का ध्यान ही सत्य है।
३. भगवान् ने अचौर्य के लिए प्रवचन किया। भगवान् ने कहा-'इच्छा का संयम करो। इच्छा का संयम नहीं करने वाला दूसरों के अधिकारों और अधिकृत वस्तुओं का हरण करता है। जो व्यक्ति दूसरों के अधिकारों और अधिकृत वस्तुओं का हरण करता है, उसके राग-द्वेष बढ़ते हैं। जिसके राग-द्वेष बढ़ते हैं उसके मोह बढ़ता है। जिसका मोह बढ़ता है उसके दु:ख बढ़ते हैं। यदि दुख से छुटकारा चाहते हो तो इच्छा का संयम करो।
इच्छा-संयम शाश्वत धर्म है। इसकी अनुपालना के लिए० वस्तु का अनावश्यक उपयोग मत करो। ० आवश्यकता और अनावश्यकता का विवेक करो।
इच्छा के प्रसंगों से बचो। इच्छा का संयम ही अचौर्य है। ४. भगवान् ने ब्रह्मचर्य के लिए प्रवचन किया। भगवान् ने कहा-'अब्रह्मचर्य की आसक्ति को जीत लेने पर शेष आसक्तियों का पार पाना सरल हो जाता है। महासागर तैर लेने पर नदियों का तैरना कठिन नहीं होता।'
ब्रह्मचर्य शाश्वत धर्म है। इसकी अनुपालना के लिए० वाणी का संयम करो। ० दृष्टि का संयम करो। ० स्मृति का संयम करो। ० खाद्य का संयम करो।
आत्म-दर्शन का अभ्यास करो। चेतना की गहराइयों में रम जाना ही ब्रह्मचर्य है।
५. भगवान् ने अपरिग्रह के लिए प्रवचन किया। भगवान् ने कहा-'परिग्रह में आसक्त मनुष्य पैर को बढ़ाता है, इसलिए पदार्थ में मूर्छा मत करो।'
अनासक्ति (अमूर्छा) शाश्वत धर्म है। इसकी अनुपालना के लिए० शब्द में आसक्त मत बनो। ० रूप में आसक्त मत बनो।
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