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४२/भगवान् महावीर
१. भगवान् ने अहिंसा के लिए प्रवचन किया। भगवान् ने कहा
० किसी जीव को मत मारो, ० किसी को मत सताओ, ० किसी पर हुकमत मत करो, ० किसी को परतन्त्र मत करो-दास मत बनाओ। यह समता-धर्म है, यह अहिंसा धर्म है, यही शाश्वत धर्म है। समता-धर्म की अनुपालना के लिए० न किसी से डरो और न किसी को डराओ। ० न किसी को हीन समझो और न अपने आपको हीन समझो। ० किसी से घृणा मत करो। ० इष्ट वस्तु के मिलने पर हर्ष और न मिलने पर शोक मत करो। • सुख में हर्षित और दुःख में दीन मत बनो। ० जीवन में आसक्त और मौत से भयभीत मत बनो। ० प्रशंसा से मत फूलो और निन्दा से मत मुरझाओ। ० सम्मान पाकर गर्व और अपमान पाकर तुच्छता का अनुभव मत
करो।
जीवन के सब द्वन्द्वों से सम रहो, तटस्थ रहो। समता में रहना ही अहिंसा है।
२. भगवान् ने सत्य के लिए प्रवचन किया। भगवान् ने कहा-'सत्य भगवान् है। वही लोक में सारतत्त्व है। उसकी खोज करो। जीवन के किसी भी व्यवहार में असत्य का प्रयोग मत करो।'
सत्य शाश्वत धर्म है। इसकी अनुपालना के लिए० काया से ऋजु रहो-झूठा संकेत मत करो। ० मन से ऋजु रहो-जो मन में हो वही भाव प्रदर्शित करो। जो __ मन में न हो वह भाव प्रदर्शित मत करो। ० वाणी से ऋजु रहो-असत्य वचन मत बोलो। ० संवादी रहो-कथनी और करनी की समानता रखो। ० क्रोध मत करो। ० लोभ मत करो।
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