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३६ / भगवान् महावीर
उपलब्धि के निकट चल रहे थे । उस समय उन्होंने एक प्रयोग की परिकल्पना की । इसका संबंध एक घटना चक्र से जुड़ा था। भगवान् अपनी मौन साधना से जन-कल्याण कर रहे थे । वह साधना ही क्या, जिससे अपने कल्याण के साथ-साथ जन-कल्याण न हो। उन दिनों नारी और दास दोनों की भारी अधोगति हो रही थी । धार्मिक धारणा के कारण नारी समानता के अधिकार से वंचित थी । वह हीन मानी जाती थी । कर्मवादी धारणा ने दास को नारकीय जीवन बिताने के लिए बाध्य कर रखा था । अभिजात वर्ग उस पर मनचाहा अत्याचार कर सकता था, उसे पशु की भांति बेच सकता था, पीड़ित कर सकता था, अंगहीन कर सकता था और मृत्युदण्ड भी दे सकता था। इसमें न राज्य का कोई हस्तक्षेप था और न कोई धर्म - चेतना इसके विरोध में प्रबल आन्दोलन कर रही थी । नीति, धर्म और भाग्य के नाम पर हिंसा का तांडव शताब्दियों से चल रहा था ।
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पौष कृष्णा प्रतिपदा के दिन भगवान् ने संकल्प किया। वह संकल्प अन्यायपूर्ण परिस्थिति को बदलने का एक महत्त्वपूर्ण हेतु बना। भगवान् ने उसे प्रकट नहीं किया। क्या अव्यक्त की शक्ति व्यक्त से कम काम करती है ? उसने कौशाम्बी के जन-मानस को इतना झकझोरा कि छह मास की अवधि में एक क्रांति घटित हो गई। भगवान् पौष कृष्णा प्रतिपदा को आहार लेने के लिए निकले । अनेक घरों में घुसे। लोगों ने अपने घरों में भगवान् के आने को कल्पवृक्ष का अवतरण माना। घरों में जो भोजन था, उसे लेने का अनुरोध किया । पर भगवान् ने उनका अनुरोध स्वीकार नहीं किया । वे बिना भोजन किए लौट गए। दूसरे दिन भगवान् कौशाम्बी के घरों में घूमे । फिर भोजन किए बिना लौट गए। लोग बड़े आश्चर्य में थे । वे भगवान् की भावना को समझ नहीं पा रहे थे । तपस्या के दिनों में वे एकांत में ध्यानलीन रहते थे, भोजन के लिए घरों में नहीं जाते थे। जब तपस्या नहीं होती तब घरों में जाते और भोजन करते थे । ये दोनों बातें जनता जानती थी । आजकल भगवान् घरों में आते हैं और भोजन नहीं करते, इसका रहस्य जनता नहीं जान सकी । इसलिए यह नगरी में चर्चा का विषय बन गया । भगवान् एक दिन अमात्य सुगुप्त के घर आए । अमात्य की पत्नी का नाम था नन्दा। वह भगवान् के प्रति श्रद्धा रखती थी। उसने बड़ी श्रद्धा
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