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१४/भगवान् महावीर
हम कुछ संशोधन करना चाहते हैं।' 'तो क्या मेरा पुत्र चक्रवर्ती नहीं होगा?' महाराज ने बड़ी अधीरता से पूछा। स्वप्न-पाठक ने कहा-चक्रवर्ती होगा, पर वैशाली के गणतन्त्र की प्रणाली को समाप्त करने वाला चक्रवर्ती नहीं होगा। वह धर्म-चक्रवर्ती होगा। वह गणतन्त्र के आदर्श और मूल्यों को विकसित करेगा। वह होगा अहिंसा, स्वतंत्रता, सापेक्षता, सहअस्तित्व और अपरिग्रह के सिद्धांतों का यशस्वी प्रवक्ता और महान् सूत्रकार ।'
महाराज सिद्धार्थ उलझन के भंवर से एक साथ निकल गए। उन्होंने सुख की सांस ली। उन्होंने मन ही मन स्वप्न-पाठकों को धन्यवाद दिया। त्रिशला की प्रसन्नता भी महाराज के साथ थी। दोनों का राजसी हर्ष सात्विक हर्ष में बदल गया। राजसी हर्ष में मन एक-जैसा नहीं रहता। उसमें प्रसाद और विषाद का चक्र चलता रहता है। सात्विक हर्ष में केवल प्रसाद होता है। उसकी परिणति विषाद में नहीं होती।
महाराज ने स्वप्न-पाठकों को बहुमूल्य उपहार देकर विदा किया और स्वयं अपनी दिनचर्या में लग गए। प्रतिज्ञा
इस दुनिया में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन पर हम सहसा विश्वास नहीं करते। हम उन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं जिनसे परिचित हैं, जिन्हें अपनी आंखों से देखते हैं। हम जानते हैं कि मनुष्य जन्म लेने के बाद बढ़ता है। वह जैसे-जैसे बढ़ता है वैसे-वैसे उसका ज्ञान बढ़ता है। जन्मते बच्चे का ज्ञान विकसित नहीं होता। इन्द्रिय तन्त्र और मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ उसका ज्ञान विकसित होता है।
त्रिशला का पुत्र गर्भ में भी प्रत्यक्षज्ञानी (अवधिज्ञानी) था-यह बात हमें चौका देने वाली है। गर्भ में परोक्ष-ज्ञान (इन्द्रिय-ज्ञान) भी विकसित नहीं होता तब प्रत्यक्ष-ज्ञान (अतीन्द्रिय-ज्ञान) कैसे विकसित हो सकता है? असाधारण घटना संदेह और तर्क का लम्बा जाल बिछा देती है।
नवजात पिछले जन्म में नन्दन नाम का तपस्वी था। उसने अपने जीवन में बहुत तपस्याएं कीं। वह मास तक ध्यान में लीन रहता और मास के बाद एक दिन स्वल्प आहार लेता। फिर मासिक ध्यान-योग प्रारम्भ हो जाता। यह ध्यान और तप की साधना वर्षों तक चली। मुनि नन्दन के
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