________________
गृहवास के तीस वर्ष/९
जनता विशेष प्रभावित हुई।
जेठ की गर्मी से संतप्त लोगों को वर्षा की बूंदें जैसे प्रिय लगती है, वैसे ही हिंसा से पीड़ित जनता को अहिंसा का स्वर बहुत मनोरम लगा। श्रमणों का अहिंसा का स्वर क्षीण हो रहा था। भगवान् पार्श्व ने उसे फिर शक्तिशाली बना दिया। अहिंसा के अभियान ने भगवान् पार्श्व को असाधारण लोकप्रिय बना दिया। वे श्रमण-परम्परा के सीमा-बंधन से ऊपर उठ कर सर्वव्यापी हो गए। ई.पू. ७७७ में उनका निर्वाण हो गया।
सूर्य आता है, तब सारा संसार प्रकाश से जगमगा उठता है। उसकी रश्मियां लौटती हैं तब सारा संसार तिमिर से भर जाता है। विश्व के रंगमंच पर यह अभिनय हर दिन होता है, फिर भी हमारे मन में एक तर्क है और वह बार-बार उभरता है। भगवान् पार्श्व ने अहिंसा को गतिमान बनाया पर उनके निर्वाण के बाद क्या हआ? अहिंसा की गति मन्द हो गई। उनके अनुयायी शिथिल हो गए। हम उस सचाई को भूल जाते हैं कि विश्व का कण-कण सूर्य के प्रकाश को अपने में उतारता है और चमक उठता है। वे तब तक चमकते हैं, जब तक सूर्य होता है। उसके चले जाने पर वे बुझे हुए से हो जाते हैं, क्योंकि वे स्वयं-प्रकाशी नहीं हैं। इस दुनिया में स्वयं-प्रकाशी बहुत कम होते हैं। अधिकांश लोग पर से प्रकाशित होते हैं। प्रकाशित करने वाला नहीं रहता, तब चारों ओर अन्धकार छा जाता है।
सूर्य से प्रकाश लेने वाले उसके चले जाने पर तिमिर में हों, यह कोई आश्चर्य नहीं है। आश्चर्य यह हो सकता है कि सूर्य से प्रकाश लेने वाले उसके चले जाने पर भी प्रकाशित रहें। भगवान् पार्श्व के निर्वाण को अभी दो सौ वर्ष ही नहीं हुए थे कि अहिंसा के अभियान की प्राणवत्ता समाप्त हो गई। अकर्मण्यता, अशांति और विषमता की अमा इतनी गहरा गई कि जनता फिर सूर्यादय की प्रतीक्षा करने लगी। सूर्योदय
बसन्त अपने अस्तित्व का बोध करा रहा था। वनराजी नए पत्तों का नया परिधान पहने इठला रही थी। फूल परिमल बिखेर रहे थे। बासंती पवन उसे दूर-दूर तक संप्रेषित कर रहा था। उस सौरभमय वातावरण में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी का सूर्य उगा। उस दिन देवी त्रिशला ने एक पुत्र को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org