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८/भगवान् महावीर
थे। इस मान्यता में जातिवाद के अहं का प्रदर्शन नहीं है। इसमें इस सत्य की सूचना है कि श्रमण-धर्म क्षत्रिय-जाति का मुख्य धर्म रहा है।
___ धर्म यद्यपि वैयक्तिक है, फिर भी वह सामाजिक प्रवृत्ति को प्रभावित करता रहा है। विवाह-सम्बन्ध के लिए जैसे कुल, बल, रूप, वैभव आदि देखे जाते थे, वैसे ही धर्म भी देखा जाता था। कन्यायें विधर्मी को भी दी जाती थीं, पर साधारणतया पिता अपनी कन्या का विवाह साधर्मिक के साथ ही करना पसन्द करता था। महाराज केक ने अपनी पुत्री त्रिशला का विवाह सिद्धार्थ के साथ किया। इस वैवाहिक योग से वैशाली और क्षत्रिय-कुंडपुर के संबंध प्रगाढ़ हो गए। सूर्योदय की प्रतीक्षा
प्राकृत भाषा का शब्द है-समण। संस्कृत में उसके तीन अर्थ होते
१. श्रमण-श्रम या पुरुषार्थ करने वाला। २. शमन-शम या शान्ति रखने वाला। ३. समण-समानता का व्यवहार करने वाला।
श्रमण-संस्कृति के तीन मुख्य सिद्धांत हैं-श्रम, शान्ति और समानता। वह सभ्यता के आदिकाल से इन्हीं के प्रचार-प्रसार और प्रयोगों में लगी हुई है। भगवान् ऋषभ इस संस्कृति के प्रथम प्रणेता थे। भगवान् पार्श्व का इस धारा में तेईसवां स्थान है। वे वाराणसी के राजकुमार थे। ई.पू. ८७७ में उनका जन्म हुआ। ई.पू. ८४७ में वे दीक्षित हुए।
भगवान् पार्श्व ने अहिंसा को सामुदायिक साधना के आसन पर प्रस्थापित किया। उससे उसका मूल्य-परिवर्तन हो गया। पहले उसका वैयक्तिक मूल्य था। भगवान् पार्श्व के प्रयत्न से उसका सामाजिक मूल्य हो गया।
अहिंसा श्रमण का अर्वाचीन संस्करण है। इसमें श्रमण के तीनों अर्थ सन्निहित हैं। जो श्रमजीवी नहीं होता वह अहिंसक नहीं हो सकता। जो शांतिजीवी नहीं होता वह अहिंसक नहीं हो सकता।
भगवान् पार्श्व ने अहिंसा के अभियान को बहुत गतिशील बनाया। उससे विदेह, सिंधु-सौवीर, अंग, कुरु, पांचाल, काशी-कौशल आदि देशों की
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