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२/भगवान् महावीर
को सताने की साधना पद्धति का उन्होंने विरोध किया। इस विरोध के कारण उन्हें कठिनाइयां झेलनी पड़ीं, पर अहिंसा और मैत्री के पथ पर चलने वाला हिंसा का विरोध करता है और उसके फलस्वरूप आने वाली कठिनाइयों को झेलता है।
___भगवान् पार्श्व के समय में श्रमणों का शासन बहुत प्रभावी हो गया। उसका प्रभाव अहिंसा का प्रभाव था। इसलिए भगवान् पार्श्व बहुत लोकप्रिय हो गए। श्रमण ब्राह्मण दोनों परम्पराओं के अनुयायी उनकी महानता को स्वीकार करने लगे। भगवान् महावीर ने भगवान् पार्श्व के लिए 'पुरुषादानीय'-लोक-पूज्य, लोक-नेता विशेषण का प्रयोग किया। महाराज चेटक, भगवान् के माता-पिता-ये सब भगवान् पार्श्व के प्रशिष्य थे। भौतिकता और प्रकृति-पूजा की धारा के सामने अध्यात्म और आत्मोदय की धारा को प्रवाहित करने का महान् कार्य भगवान् पार्श्व ने किया था और उसे जन-व्यापी बनाया था। भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध तथा अनेक श्रमण-शासन के तीर्थंकरों को उनकी महान् उपलब्धियां विरासत में प्राप्त हुई थीं। भगवान् महावीर के युग में सामाजिक और धार्मिक परिस्थिति
परिवर्तन जगत् की नियति है, ऐसी नियति कि जिसे कोई टाल नहीं सकता। जहां परिवर्तन है वहां उतार-चढ़ाव भी अनिवार्य है। इस नियति-चक्र में कोई भी एकरूप नहीं रह सकता। भगवान् पार्श्व ने अहिंसा और संयम की जो धारा प्रवाहित की थी, वह उनके निर्वाण की दो शताब्दियां बीतते-बीतते शिथिल होने लगी। भगवान् महावीर साधना के क्षेत्र में आए, तब सामाजिक मूल्य विषमता से आक्रांत हो गए थे। समाज दण्ड-शक्ति के द्वारा शासित हो रहा था। राजे नरदेव बन चुके थे। जनता का काम उनका शासन स्वीकार करना ही था। उनके अत्याचारों को सहन करना जनता का धर्म माना जाता था। राज-पुरोहितों ने राजाओं के प्रति इतना श्रद्धाभाव निर्मित किया कि जनता राजाज्ञा को ईश्वरीय आदेश मानने लगी। उनका विरोध करना नरक के द्वार को उद्घाटित करना था।
धन की पूजा भी बहुत बढ़ गई थी। कुछ लोग सम्पन्न थे, कुछ विपन्न । संपन्न मनुष्य विपन्न मनुष्यों को खरीदकर अपना दास बनाते
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