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९२ / भगवान् महावीर
- दुर्जन (असंयमी ) व्यक्ति की संगति करने से सज्जन ( संयमी ) व्यक्ति भी तुच्छता को प्राप्त होता है । उसका महत्व घट जाता है । जैसे कि बहुमूल्य वाली माला भी मुर्दे का आश्रय पाकर तुच्छ हो जाती है । ६१. सुत्ता अमुणी सया । मुणिणो या जागरंति । ।
(आ. ३ / १ )
- अज्ञानी सदा सोता है, ज्ञानी सदा जागता है । ६२. पंच जागरओ सुत्ता, पंच सुत्तस्स जागरा । पंचहिं रयमादियति, पंचहिं च रयं चए । । ( इ. २९/२) - जो जागता है उसके पांच (इन्द्रिय) सोते हैं और जो सोता है उसके पांच जागते हैं। जागे हुए पांचों के द्वारा मनुष्य अपने आपको बांधता है । और सोए हुए पांचों के द्वारा वह अपने आपको खोलता है ।
६३. जागरंतं मुणिं वीरं, दोसा वज्जेंति दूरओ । जलंतं जातवेयं वा, चक्खुसा दाहभीरुणो ।
(इ. ३५/२३) - जो जागता है, उससे दोष दूर रहते हैं । जैसे जलती हुई आग से सब दूर रहते हैं।
६४. जागरह णरा णिच्चं, जागरमाणस्स वड्ढते वुड्ढी । जो सुवति ण सो धण्णो, जो जग्गति सो सया धण्णो ।। (बृ. भा. ३३८२ ) - तुम सदा जागो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढ़ती है । जो सोता है, वह अधन्य - भाग्यहीन है। जो जागता है, वह धन्य है ।
६५. सुयइ य अयगरभूओ, सुयं च से नासई अमयभूयं । होहिइ गोणब्भूओ, नट्ठम्मि सुए अमयभूए । । (बृ.भा. ३३८७ ) —जो अजगर की भांति निश्चित पड़ा रहता है, उसका अमृत तुल्य ज्ञान नष्ट हो जाता है और उसके नष्ट होने पर वह निरा बैल बन जाता
है ।
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