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३० : धार्मिक कौन
व्यक्ति का धार्मिक होना अपने-आपमें बहुत गौरव की बात है, पर मात्र पूजा-उपासना करने से वह धार्मिक नहीं बन जाता। उसके लिए आचरण की शुद्धि जरूरी है, बल्कि पूजा-उपासना से कहीं ज्यादा जरूरी है। इससे भी आगे मैं तो यहां तक कहता हूं कि कोई पूजा-उपासना नहीं भी करता है, पर अपने आचरण को शुद्ध बना लेता है तो वह धार्मिक ही है। मेरी दृष्टि में धार्मिकता की मूल कसौटी आचार-शुद्धि है। पूजाउपासना तो गौण बात है। वह आचार-शुद्धि के साथ ही उपयोगी बनती है। प्रकारांतर से ऐसा भी कहा जा सकता है कि पूजा-उपासना वही उपयोगी और महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्ति के लिए आचार-शुद्धि की प्रेरणा बने। जो लोग मात्र पूजा-उपासना के आधार पर अपने-आपको धार्मिक मानते हैं, उन्हें जब मैं कुकृत्यों में फंसा हुआ देखता हूं, तब मेरे मन में बड़ा खेद होता है। वे लोग स्वयं के साथ तो धोखा करते ही हैं, धर्म के साथ भी प्रतारणा करते हैं, उसे भी बदनाम करते हैं। अपनेआपको जैन कहनेवाला यदि कालाबाजारी करता है तो वह कैसा जैन ! वैष्णव कहलानेवाला यदि ग्राहकों के साथ धोखा करता है, व्यापार के नाम पर ठगाई और चोरबाजारी चलाता है तो वह कैसा वैष्णव! इसी प्रकार वासना में फंसा रहनेवाला अपने-आपको सिक्ख कहे, क्रूर कर्मों में प्रवृत्त व्यक्ति अपने-आपको मुसलमान कहे, क्या यह एक प्रकार की विडंबना नहीं है? व्यक्ति जैन, वैष्णव, सिक्ख, मुसलमान, बौद्ध, ईसाई "कुछ भी बनने और कहलाने से पहले सदाचारी बने, अपना व्यवहार सही बनाए, यह नितांत अपेक्षित है। तभी वह सच्चा धार्मिक है, तभी व सच्चा जैन, वैष्णव या सिक्ख कहलाने का अधिकारी है, तभी वह मुसलमान, बौद्ध या ईसाई कहलाने का वास्तविक हकदार है। मानवता की सुरक्षा हो आज के युग की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि मानवता पर संकट
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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