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महावीर के सदेश की प्रासंगिकता
इस स्थिति से उबरने के लिए नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों की पुनः प्रतिष्ठा करनी होगी। सदाचार को महत्त्व देना होगा। माना कि राष्ट्र के सभी लोग वर्धमान महावीर और गौतम बुद्ध नहीं हो सकते, पर सच्चे मानव तो बन ही सकते हैं। यदि मानव ही नहीं बने तो क्या अगली पीढ़ी हंसेगी नहीं ? आप कहेंगे कि मानव तो सभी हैं ही, फिर मानव बनने से क्या तात्पर्य। तात्पर्य बहुत स्पष्ट ही है। जीवन में मानवता का समावेश होना अपेक्षित है। मानवता के बिना तो व्यक्ति केवल आकार का मानव है। ढाई हजार वर्ष पूर्व वर्धमान महावीर ने जन-जन को मानवता का पाठ पढ़ाया था, मानवता का संदेश सुनाया था। यों तो उसकी प्रासंगिकता कभी समाप्त हुई ही नहीं, पर वर्तमान की परिस्थितियों में तो वह बहुत बढ़ गई है। अपेक्षा है, उनका वह संदेश आप समझें और उसे जीवन में उतारें।
वर्धमान २७ फरवरी १९५९
वर्धमान महावीर के उपदेशों की व्यापकता
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