________________
जहां कायिक हिंसा से बचने की बात कहते हैं, वहां वर्धमान महावीर की अहिंसा वाचिक और मानसिक स्तर तक जाती है। किसी के प्राणवियोजन की तरह ही जबान से अपशब्द बोलना, अश्लील शब्द कहना आदि प्रवृत्तियां भी हिंसा की कोटि में समाविष्ट हैं। मन से दूसरों का बुरा चिंतन करना भी हिंसा ही है। आप यह बात समझें कि हिंसा मात्र अस्त्र-शस्त्र से ही नहीं होती, उसके दूसरे-दूसरे भी अनगिनत प्रकार हैं। व्यापारियों का अस्त्र-शस्त्र से भला क्या काम? पर मैं देखता हूं कि बहुत-से व्यापारियों की कलम ही छूरी का काम करती है। अनपढ़ गरीब आदमी को सौ रुपए देकर हजार लिख देना, क्या उसके गले पर छुरी फेरना नहीं है? क्या हिंसा नहीं है ? राजनीतिक चुनावों के समय मतों की खरीद-फरोख्त चलती है। क्या इसे हिंसा नहीं मानेंगे? जननेता अपने सेवाव्रत की अनदेखी कर स्वार्थसिद्धि में जुट जाते हैं, रिश्वत लेते हैं। यह हिंसा नहीं तो और क्या है? सार-संक्षेप यह कि वर्धमान महावीर ने व्यक्ति की दुष्प्रवृत्तिमात्र को हिंसा माना है और उससे बचने का उपदेश और प्रेरणा दी है। पंडित कौन
__लोग पुस्तकीय ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति को पंडित मानते हैं, पर ज्ञानीजनों की दृष्टि में पंडित वह है, जो हिंसा, असत्य आदि से उपरत है। जो परस्पर लड़ते-झगड़ते हैं, वे भले कितने ही बड़े-बड़े ग्रंथ क्यों न पढ़ लें, वे सही अर्थ में पंडित नहीं हैं। वैज्ञानिकों का ज्ञान भी बहुत समृद्ध होता है, किंतु जब वे लड़ने-लड़ाने के काम में लगे हैं, तब पंडित कहां ? मुझे उन लोगों की समझ पर बड़ा तरस आता है, जो एक तरफ तो अणुबम, उद्जनबम आदि के निर्माण-जैसी विध्वसंकारी प्रवृत्ति में संलग्न है और दूसरी तरफ धर्मस्थानों में जाकर शांति के लिए लंबीलंबी प्रार्थनाएं करते हैं। शांति का उपाय
अणुबम, उद्जनबम एवं घातक हथियारों का निर्माण क्यों किया जाता है ? उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। सत्तालिप्सु लोग दूसरों के राज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते हैं, संसार को अपने अधिकार में करना चाहते हैं, पर इस सत्तालिप्सा एवं अंधी महत्त्वाकांक्षा के कारण वे यह नहीं सोचते कि इनके प्रयोग का परिणाम कितना भयावह आएगा।
वर्धमान महावीर के उपदेशों की व्यापकता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org