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२९ : वर्धमान महावीर के उपदेशों की व्यापकता
आज हम भगवान वर्धमान महावीर के नाम से प्रख्यात वर्धमान नगर में आए हैं। पहले हम इसका नाम सुनते थे। इच्छा भी थी, कभी यहां आऊं, पर आज से पहले कभी यह संभव नहीं हो पाया। आज यह प्रसंग बना है, इसकी मुझे प्रसन्नता है। पर कैसी बात है कि जिस भूमि को भगवान वर्धमान ने अपना विहार-क्षेत्र बनाया, जहां अपनी अमृतवाणी की वर्षा की, आज वहां के लोग उनके उपदेशों से अपरिचित-से लगते हैं! पर इसका दोष भी किसे दें! भगवान वर्धमान के शिष्य साधु-संतों का लंबे अरसे से यह विहार-क्षेत्र नहीं रहा। इसलिए उनका यहां आना नहीं हुआ; और साधु-संतों के बिना धर्म का व्यवस्थित प्रचार संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में यहां की जनता का भगवान वर्धमान के उपदेशों से अपरिचितसा होना अस्वाभाविक भी नहीं माना जा सकता। महावीर का उपदेश प्राणिमात्र के लिए है
भगवान वर्धमान ने जो मार्ग बताया, उसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह व्यापक है। वह किसी जाति, वर्ण, वर्ग और संप्रदायविशेष के लिए नहीं है, केवल मानव के लिए भी नहीं है, अपितु प्राणिमात्र के लिए है। महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा-चरत भिक्खवे बहुजनहिताय बहुजनसुखाय। लेकिन भगवान वर्धमान ने तो सव्वजीव-रक्खणट्ठाए-सभी प्राणियों के हित के लिए उपदेश दिया। उन्होंने कहा-'किसी को मत सताओ, किसी को दुःख मत दो, किसी का प्राण-वियोजन मत करो"...." प्रत्येक प्राणी को आत्मवत समझो।' एक शब्द में कहें तो उन्होंने अहिंसा धर्म का उपदेश दिया। अहिंसा का व्यापक रूप
यों अहिंसा का उपदेश सभी महापुरुषों ने दिया है। संसार के समस्त धर्म अहिंसा को अपनाने की बात कहते हैं, परंतु दूसरे-दूसरे लोग
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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