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________________ २८ : मोक्ष पुरुषार्थसाध्य है भारत एक विशाल राष्ट्र है। यहां की संस्कृति विश्व में अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। दार्शनिक परंपरा की दृष्टि से यह बहुत समृद्ध है। यहां की भूमि पर अनेक ऋषि, तपस्वी और तत्त्व-द्रष्टा पैदा हुए हैं। उनका अपना एक गौरवशाली एवं प्रेरक इतिहास है, एक पूरी समर्थ परंपरा है। निर्बाध रूप से उनकी वह परंपरा चली आ रही है। उसी निर्बाध रूप से चल रही परंपरा का ही यह परिणाम है कि यहां कण-कण में अध्यात्म व्याप्त है, जन-जन में आध्यात्मिक स्फुरणा है। और तो क्या, छोटे बच्चे भी अध्यात्म और दर्शन की चर्चा करने में अभिरुचि रखते हैं। एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अनेक दार्शनिक परंपराओं के बावजूद यहां का जन-मानस मूलतः अनुदार नहीं रहा है। यही तो कारण है कि चार्वाक (नास्तिक दर्शन) को भी विभिन्न दर्शनों में एक दर्शन गिना गया है। ___ जैन-दर्शन भारतीय दर्शन-परंपरा में एक प्रमुख दर्शन है। यह अपने-आपमें एक पूर्ण दर्शन है। सांसारिक जीव के मोक्ष तक की यात्रा की विस्तृत एवं सांगोपांग चर्चा इस दर्शन में की गई है। इसके अनुसार अपना स्वरूप भूलकर विभाव में जाना दुःख है। विभाव से छूटकर स्वभाव में रमण करना चिरंतन और शाश्वत सुख है। दुःख से ऐकांतिक और आंत्यतिक उन्मुक्ति की स्थिति मोक्ष है। मोक्ष किसी की कृपा या अनुग्रह का फल नहीं है। वह तो आत्मा के अपने प्रयत्न एवं पुरुषार्थ से ही साध्य बनता है। जब तक प्राणी मोक्ष नहीं प्राप्त कर लेता, तब तक वह संसार में परिभ्रमण करता रहता है। संसार में परिभ्रमण करानेवाले हैं-कर्म। कर्म का आगम-द्वार आश्रव कहलाता है। आश्रव के निरोध का नाम संवर है। इससे नए कर्मों का आगमन रुक जाता है। पूर्व संचित कर्मों के अपाकरण को निर्जरा कहा जाता है। संसार-परिभ्रमण का हेतु एवं उससे छूटकर मोक्ष तक पहुंचने की यह पूरी प्रक्रिया गहराई से समझना अपेक्षित है, ताकि उस दिशा में गति की जा सके। शांति-निकेतन, २२ फरवरी १९५९ मोक्ष पुरुषार्थसाध्य है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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