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________________ २१ : सच्चा सुख सामान्यतः लोग बाह्य सुविधाओं में सुख देखते हैं, सुख खोजते हैं, पर वास्तविकता कुछ और ही है। आप कल्पना करें, एक व्यक्ति के पास अच्छा मकान है, सब तरह की सुविधा-सामग्री है। सहसा उसके पेट में असह्य दर्द शुरू हो जाता है अथवा कहीं से अति अप्रिय समाचार का तार आ जाता है। ऐसी स्थिति में क्या वह आलीशान मकान और नानाविध साधन-सामग्री उसके लिए सुखद बनी रहेगी? उत्तर स्पष्ट ही है। सुखद बनी रहने की बात संभव नहीं लगती। बहुत संभावित तो यह है कि ऐसी स्थिति में वह दुःख से विलाप करने लगे। ज्ञानियों की दृष्टि में सच्चा सुख है-मन की समाधि। ध्यान रहे, यह मन की समाधि भौतिक साधन और सुविधा-सामग्री पर आधारित नहीं है, बिलकुल भी आधारित नहीं है। पाटलिपुत्र (पटना) में हम पांच लाख के विशाल भवन में रहे और यहां जमीन पर बैठे हैं, परंतु मैं अनुभव कर रहा हूं कि तुलनात्मक दृष्टि से मुझे यहां अधिक आनंद है, शांति है, क्योंकि यहां मैं विशेष मनःसमाधि पा रहा हूं, पर यह बात तब समझ में आती है, जब व्यक्ति की अंतर्दष्टि जाग्रत हो जाए। जब तक वह बहिर्दृष्टि बना हुआ है, तब तक तो वह भौतिक साधनसामग्री में ही सुख ढूंढ़ता रहेगा। इसलिए अपनी अंतर्दृष्टि जगाने का सलक्ष्य प्रयत्न होना चाहिए। सच तो यह है कि अंतर्दृष्टि बन जाने के पश्चात व्यक्ति के चिंतन की संपूर्ण धारा ही बदल जाती है, समग्र व्यवहार ही बदल जाता है। फिर वह दूसरों के अहित की कोई बात नहीं सोच सकता, ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं कर सकता, जिससे दूसरों को कष्ट पहुंचे, उनका सुख बाधित हो। आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थिति है। जो व्यक्ति इस स्थिति में पहुंच जाता है, उसका जीवन सुख सच्चा सुख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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