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१९ : अणुव्रत-आंदोलन : चारित्रिक रोगों की
प्राकृतिक चिकित्सा
प्रकृति में जो सहज सौंदर्य होता है, वह विकृति में कहां ? प्रतिमा के मूल रूप में जो सौंदर्य मिलता है, वह उसे चांदी और सोने से मढ़ देने के बाद कहां? प्रकृति में आकर्षण होता है, इसी लिए मैं अनिमंत्रित भी प्राकृति के साम्राज्य में जाता हूं और उसका स्वागत लेता हूं। राजगृह
और क्षत्रियकुंड अभी गया था और आज जसडीह आया हूं। किसने निमंत्रण दिया था? किसी ने नहीं। प्रकृति में मेरी रूचि है और आकर्षण है, इसी लिए ऐसे प्राकृतिक स्थानों पर मैं जाता रहता हूं।
प्रकृति से उपलब्ध सामग्री के उपयोग में मुझे जो आनंद मिलता है, वह कृत्रिमता में नहीं। इसी प्रकृति के हेतु मैं किसी वाहन का प्रयोग नहीं करता, पैदल चलता हूं; और वह भी नंगे पैर। पंखे का उपयोग भी नहीं करता। बावजूद इसके, मैं प्रसन्नचित्त हूं, क्योंकि कृत्रिमता के प्रति मेरा किंचित भी आकर्षण नहीं है। बच्चे की बोली में जो माधुर्य होता है, वह बड़ों की बोली में कहां? प्रकृति में रमण करनेवालों को विकृति अच्छी नहीं लगती।
कल की घटना है। हम नवादा से जसीडीह की ओर चले। ढाई मील प्राकृतिक-कच्चे रास्ते पर चले। फिर एक मील विकृति-सड़क पर चले। सड़क खराब थी। चलने में कष्ट होना स्वाभाविक ही था। विकृति में वह आनंद कैसे मिले ?
एक कार्यकर्ता दौड़ता हुआ-सा मेरे पास आया और बोला-'चार मील के बाद जो कच्चा रास्ता था, वह वर्षा के कारण खराब हो गया है। मिट्टी चिकनी होने के कारण पैर फिसलते हैं। चलने में कठिनाई होगी। इसलिए आपको सड़क का मार्ग लेना चाहिए। तीन मील अधिक तो अवश्य पड़ेगा, पर चलने में सुविधा रहेगी।' अणुव्रत-आंदोलन : चारित्रिक रोगों की प्राकृतिक चिकित्सा
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