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________________ महावीर बोल रहे हैं! आज का यह दृश्य, पुढ़वीशिला का यह आसन कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मुझे तो ऐसा प्रतिभासित होता है कि मैं तो एक आकार हूं, माध्यम हूं। वास्तव में तो अदृश्य रूप में भगवान महावीर बोल रहे हैं। मैं आज आनंद-विभोर हूं, गद्गद हूं। किसी ने यह कब कल्पना की थी कि मैं इस पुढ़वी-आसन पर आसीन होकर बोलूंगा। साधु-साध्वियां कितने मनोरम लगते हैं! हमारे संघीय जीवन के अनुशासन में स्वतंत्रता है और स्वतंत्रता में अनुशासन है। यहां अनुशासन थोपा नहीं जाता, बल्कि स्वेच्छा से सहर्ष स्वीकार किया जाता है। यह दृश्य देख श्रावक-श्राविकाएं कितने प्रसन्न हैं, इसका अनुमान उल्लसित चेहरा-चेहरा देखकर लगाया जा सकता है। मेरी यह भावना है कि मैं साधु-साध्वियों की तरह ही इन्हें भी निरंतर प्रगति की राह पर आगे बढ़ाता चलूं। आगम-साहित्य में आचार्य को गोप और सायात्रिक कहा गया है। मैं चाहता हूं, उनके अनुरूप मैं अपना उत्तरदायित्व निभाता रहूं। एक संकल्प की अभिव्यक्ति यह सप्तपर्णी गुफा एक ऐतिहासिक स्थान है। बौद्धों की प्रथम संगीति यहीं हुई थी। मैं भी इस ऐतिहासिक स्थल पर एक संकल्पात्मक विचार व्यक्त करना चाहता हूं कि पांच वर्षों की अवधि में हमें समस्त मूल आगमों का संपादन कर लेना चाहिए। इस कार्य में हम जुटे रहेंगे और उपलब्ध सामग्री के आधार पर इसे आगे से आगे बढ़ाने का हमारा प्रयत्न चलता रहेगा। सप्तपर्णी गुफा, राजगृह १९ जनवरी १९५९ .४६ ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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