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मुझे इस बात का अंतस्तोष है कि विगत वर्षों के प्रयास के फलस्वरूप इस क्षेत्र में एक सुंदर वातावरण निर्मित हो रहा है। परस्पर निकट आने
और एक-दूसरे को समझने-समझाने की भूमिका बन रही है। मुझे आशा है कि सामंजस्य, सद्भाव और मंडनात्मक नीति के व्यापक प्रसार से यह भूमिका और अधिक विस्तृत और सुदृढ़ बनेगी। अपेक्षा है, सभी जैनसंप्रदाय इस कार्य का महत्त्व समझें। वे अपनी सोच विधेयात्मक बनाएं, अपने व्यवहार से एकता पर बल दें। सामूहिक प्रयत्न से ही यह कार्य सफलता के बिंदु तक पहुंच पाएगा। मनुष्य पहले मनुष्य है
इन दोनों कार्यों के साथ-साथ लोक-जीवन के सांस्कृतिक और चारित्रिक अभ्युदय के लिए प्रयत्न करना भी मेरा लक्ष्य है। मैं मानता हूं कि यह आज की सबसे बड़ी अपेक्षा है। इस दृष्टि से हमने अणुव्रतआंदोलन का कार्यक्रम चला रखा है। इस कार्यक्रम को सभी वर्गों व धर्मों के लोगों का व्यापक समर्थन और सहयोग प्राप्त हो रहा है। यह प्रसन्नता की बात है, भविष्य के लिए एक शुभ शकुन है। वैसे कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें इस व्यापक कार्यक्रम में भी संकीर्णता नजर आती है, सांप्रदायिकता की बू आती है। इसलिए कहीं-कहीं यदा-कदा यह आशंका का स्वर भी सुनने को मिलता है कि अणुव्रत-आंदोलन के बहाने कहीं सभी को तेरापंथी बनाने का प्रयास तो नहीं है। मैं बहुत स्पष्ट शब्दों में उन्हें आश्वस्त करते हुए कहना चाहता हूं कि हमारा सबसे पहला प्रयास सबको मनुष्य बनाने का है। मनुष्य पहले मनुष्य है, बाद में धार्मिक या और कुछ-यह मेरी पुष्ट मान्यता है। अणुव्रत-आंदोलन के माध्यम से सांस्कृतिक एवं चारित्रिक अभ्युदय के पीछे मानवता की प्रतिष्ठा की ही भावना है, मानव को मानवीय सद्गुणों के सांचे में ढालने का ही लक्ष्य है। मेरे समक्ष अनेक विद्वान बैठे हैं। विद्वानों के पास चिंतन
और कलम की अद्भुत शक्ति होती है। मैं उन्हें आह्वान करता हूं कि मानवता के परित्राण और निर्माण के इस महनीय कार्य में वे अपनी शक्ति का नियोजन करें। इससे उनकी विद्वत्ता को सच्ची सार्थकता मिलेगी।
राजगृह १८ जनवरी १९५९
दो करणीय कार्य
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