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आगम-संपादन
मेरे समक्ष दो प्रमुख करणीय कार्य हैं। प्रथम है - साहित्य - साधना का और दूसरा है-विभिन्न संप्रदायों में पारस्परिक समन्वय लाने का । आगमों के संदर्भ में हमारी एक पूरी योजना है, उसे क्रियान्वित करने का एक संकल्पात्मक चिंतन है। हालांकि यह एक बहुत विशाल कार्य है, तथापि मुझे इस बात का संतोष है कि यह कार्य अपनी गति से उत्तरोत्तर आगे बढ़ रहा है। यह भी अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि इस कार्य के संदर्भ में देश के विशिष्ट विद्वानों से नैकट्य बन रहा है। उनके नए-नए उपयोगी सुझाव प्राप्त हो रहे हैं। भविष्य में भी उनका अपेक्षित सहयोग हमें प्राप्त होता रहेगा, इसके प्रति मैं आशान्वित हूं ।
मेरा सौभाग्य
१७ : दो करणीय कार्य*
मैं इस अर्थ में अपने-आपको अत्यंत सौभाग्यशाली महसूस करता हूं कि मुझे एक व्यवस्थित और अनुशासित धर्मसंघ मिला। सुव्यवस्थित एवं अनुशासित संघीय जीवन के फलस्वरूप आगम-संपादन जैसे कार्यों की दुरूहता भी सुकरता में बदल गई है। परस्पर इतना सहज ऐक्य - भाव है कि कहीं कोई द्विरूपता नजर नहीं आती। आचार्य आत्मा और संघ के साधु-साध्वियां शरीर । इस स्थिति में साधु-साध्वियों की बड़ी शक्ति का सुयोग सहज रूप से किसी कार्य में उपलब्ध हो जाता है। आगम-संपादन के इस कार्य में भी उसका सहज योग प्राप्त है। हालांकि पदयात्रा के कारण प्रारंभ में इस कार्य के संपादन में कुछ कठिनाइयां और समस्याएं भी उपस्थित हुईं, तथापि साधु-साध्वियों के दृढ़ संकल्प, लगन एवं परिश्रम के समक्ष वे अवरोध नहीं बन सकीं ।
सांप्रदायिक एकता एवं समन्वय
दूसरा प्रमुख करणीय कार्य है- सांप्रदायिक एकता एवं समन्वय का ।
*जैन संस्कृति समारोह में प्रदत्त वक्तव्य ।
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ज्योति जले : मक्ति मिले
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