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१६ : आत्म-सुख की प्राप्ति का मार्ग*
सच्चा धार्मिक कौन
भगवान महावीर और गौतम बुद्ध जनता के बीच उपस्थित होते थे, जनता की भाषा में बोलते थे और जन-जन के जीवन से संबद्ध विषय छूते थे। लोगों पर उनकी वाणी का सीधा असर होता था। फलतः उनके जीवन-व्यवहार में एक परिवर्तन घटित होता था। आज आवश्यकता इस बात की है कि तत्त्व-चिंतन मात्र तत्त्व-चिंतन के लिए नहीं, अपितु जनजन के जीवन-व्यवहार को उन्नत और परिमार्जित करने के लिए हो। जब तक व्यक्ति का व्यवहार शुद्ध नहीं बनेगा, जीवन ऊंचा नहीं उठेगा, तब तक वह वास्तव में धार्मिक नहीं बन सकेगा। जरूरी है अग्र और मूल का छेद
धार्मिक व्यक्ति की यह एक बहुत बड़ी पहचान है कि वह आत्मसुख की प्राप्ति के लिए सतत जागरूक रहता है, उसके लिए पुरुषार्थ करता है। भगवान महावीर ने बताया है कि आत्म-सुख प्राप्त करने के लिए अग्र और मूल का छेदन करो। विषैले वृक्ष की टहनियां काट देने मात्र से विष कैसे दूर होगा, जब तक कि उसकी जड़ नहीं काट दी जाती? सुखेच्छु व्यक्ति को आत्म-सुख का निरोध करनेवाले हेतुओं के बाहरी प्रसार व उनके मूल का उच्छेद करना होगा। गौतम बुद्ध के दर्शन में यहां अंतर आता है। उदाहरणार्थ, विषदिग्ध बाण से आहत व्यक्ति अपनी चिकित्सा के लिए समागत वैद्य से कहता है कि जब तक आप यह नहीं बता देते कि यह बाण किसका बना है, कहां बना है, कब बना है, कहां से आया है.""तब तक मैं इसे नहीं निकलवाऊंगा। यहां बुद्ध का कथन यह है कि यदि बाण नहीं निकाला जाएगा तो ये सारी बातें अज्ञात रह जाएंगी और आहत पहले ही मर जाएगा। इसलिए सारी बातें *जैन संस्कृति समारोह में प्रदत्त वक्तव्य।
ज्योति जले : मक्ति मिले
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