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१५ : जैनों का संयुक्त उत्तरदायित्व*
अपने घर में
जब से मैंने बिहार प्रांत में प्रवेश किया है, मेरा आनंद द्विगुणित ही नहीं, पंचगुणित हो गया है, फिर आज राजगृह पहुंचकर तो कहना ही क्या ! मैं ऐसा अनुभव कर रहा हूं कि मानो अपने घर में ही आ गया हूं। राजगृह वह क्षेत्र है, जिसकी झांकी यहां की पर्वतमाला और भूमि ही नहीं, अपितु जैनों के आगम एवं बौद्धों के पिटक भी दिखा रहे हैं। इतिहास बताता है कि भगवान महावीर ने अपने चौदह चातुर्मास इसी राजगृह में व्यतीत किए थे। निःसंदेह, यह इस क्षेत्र तथा इस क्षेत्र की जनता के असाधारण सौभाग्य का सूचक है। यहां की जनता के मन में भगवान महावीर के प्रति जो असामान्य आदर की भावना है, उसे देख मैं गद्गद हूं। महापुरुष सार्वजनीन होते हैं
___ भगवान महावीर एक दिव्य महापुरुष थे। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने धर्म का व्यापक स्वरूप प्रस्तुत किया। उनकी वाणी सर्वप्राणिहिताय, सर्वप्राणिसुखाय है। उसमें संकीर्णता को किंचित भी कोई स्थान नहीं है। महावीर की इस व्यापकता के समक्ष दूसरे-दूसरे लोगों की व्यापकता बहुत बौनी रह जाती है। उनकी व्यापकता मानव-जाति तक सीमित है। कहां तो मानव-जाति के हित की बात और कहां महावीर की प्राणिमात्र के हित और कल्याण की बात! महावीर का संपूर्ण बल इस बात पर है कि व्यक्ति अपनी मानसिक, वाचिक और कायिक किसी प्रवृत्ति से संसार के किसी छोटे-से-छोटे प्राणी का भी अहित न करे, उसे कष्ट व दुःख न पहुंचाए। किसी को सुखी बना सके, यह उनके वश की बात नहीं, पर किसी के सुख में
*जैन-संस्कृति समारोह में प्रदत्त वक्तव्य।
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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