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आएगा। अतीत तो प्रेरणा लेने के लिए होता है। उससे प्रेरणा लेकर अपने वर्तमान का निर्माण और विकास करना ही व्यक्ति के कर्तृत्व एवं विवेक की कसौटी है ।
संयम का मूल्य
अणुव्रत आंदोलन व्यक्ति का वर्तमान जीवन स्वस्थ और शुद्ध देखना चाहता है। उसकी प्रक्रिया के रूप में वह संयम की बात बताता है, आत्मानुशासन का पाठ पढ़ाता है। संयम वह तत्त्व है, जो व्यक्ति का आचरण उन्नत बनाता है, उसके विचारों को सात्त्विकता प्रदान करता है। पर कैसी बात है कि प्रकृति-विजय का दम भरनेवाले आज के आदमी के समक्ष जब संयम की बात आती है, आत्मानुशासन का स्वर पहुंचता है तो वह अपने-आपको पीछे हटा लेता है, उसे स्वीकार करने का साहस नहीं जुटा पाता ! उसे समझना चाहिए कि संयम के द्वारा अपनी उच्छृंखल वृत्तियों पर नियंत्रण करनेवाला ही सच्चा विजेता है। स्वयं पर अनुशासन ही सबसे बड़ी विजय है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम ग्रहण करके आदमी संयममय जीवन जी सकता है, आत्मानुशासन का अभ्यास कर सकता है, सच्चा धार्मिक बन सकता है।
सर्वधर्म समन्वय की दिशा
आज के धार्मिक लोगों की स्थिति बड़ी चिंतनीय है। वे लोग धर्म के नाम पर परस्पर संघर्ष करते हैं, कदाग्रह और वैमनस्य पैदा करते हैं । मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि धर्म के नाम पर कैसा संघर्ष ! कैसा कदाग्रह ! कैसा वैमनस्य ! धर्म तो संघर्ष और क्लेश मिटानेवाला तत्त्व है, कदाग्रह और वैमनस्य का शमन करनेवाला तत्त्व है। वह तो आग पर पानी डालने का काम करता है, आग लगाना उसका काम नहीं । मैं धार्मिक लोगों से कहना चाहता हूं कि वे धर्म का सही मर्म समझें और उसके अनुरूप अपना चिंतन और व्यवहार ढालें । वे एक-दूसरे को काटने नहीं, जोड़ने का काम करें; कैंची का नहीं, सूई का काम करें; वैचारिक मतभेदों के बावजूद परस्पर प्रेम से रहना सीखें; विरोधी विचारों में भी तटस्थभाव और सापेक्ष दृष्टि से सत्य खोजने का प्रयत्न करें। इससे सर्वधर्म समन्वय की दिशा स्पष्ट होगी। उनकी धार्मिकता को सार्थकता मिलेगी। अणुव्रत आंदोलन सर्वधर्म सद्भाव की बात कहता है। इसलिए
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