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________________ १३ : अपना वर्तमान संवारें धर्म की कसौटी धर्म जीवन का सर्वोच्च तत्त्व है। लोग कहते हैं कि धर्म से परलोक सुधरता है। मैं भी मानता हूं कि धर्म से परलोक सुधरता है, पर उसका सीधा संबंध वर्तमान से है। जिस क्षण व्यक्ति उसकी आराधना करता है, उस क्षण में ही वह उसकी आत्म-शुद्धि करता है, उसे शांति प्रदान करता है, उसे आनंद की अनुभूति से आप्लावित करता है। यह धर्म की वास्तविक कसौटी है। जो धर्म इस कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में धर्म है। ऐसे धर्म से परलोक तो सुधरता-ही-सुधरता है। वस्तुतः परलोक/भविष्य तो वर्तमान जीवन पर आधारित होता है। यदि वर्तमान शुद्ध है, स्वस्थ है तो भविष्य/परलोक के बिगड़ने का कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता, परंतु जो धर्म वर्तमान जीवन बिगाड़कर अथवा उसके परिष्कार की बात किए बिना परलोक और भविष्य के सुधार की बात करता है, उसे मेरी आत्मा धर्म के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। जो लोग अपने वर्तमान जीवन की स्वस्थता पर ध्यान दिए बिना ही परलोक सुधरने के प्रति आशान्वित और आश्वस्त बने बैठे हैं, उनसे मैं कहना चाहता हूं कि वे भ्रांति में हैं। उन्हें यह भ्रांति दूर कर यथार्थ का साक्षात्कार करना चाहिए। यदि वस्तुतः ही वे अपने भविष्य और परलोक-सुधार के प्रति गंभीर हैं तो उन्हें अपना ध्यान अपने वर्तमान जीवन पर केंद्रित करना चाहिए। उसे स्वस्थ और अच्छा बनाना चाहिए। अपने विचार सात्त्विक और आचार उन्नत बनाना चाहिए। कुछ लोग भविष्य और परलोक की चिंता तो नहीं करते, पर अतीत के गौरव-गीत बहुत गाते हैं। मैं उनसे भी कहना चाहता हूं कि वे केवल अतीत की गौरव-गाथाओं में भूले न रहें। यदि उनका वर्तमान उज्ज्वल और स्वस्थ नहीं है तो अतीत का स्वर्णिम इतिहास काम नहीं - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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