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________________ १२ : संयम ही जीवन है संयम जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं सारभूत तत्त्व है, बल्कि कहना चाहिए कि संयम ही जीवन है । मैं त्याग और संयम को जीवंतता का आधार मानता हूं, जीवन की पहचान मानता हूं। मूलभूत बात है जीवन का विकास। संयम जीवन - विकास का मौलिक आधार है। जो व्यक्ति जितना अधिक संयममय जीवन जीता है, उसके विकास और उत्थान का मार्ग उतना ही अधिक प्रशस्त हो जाता है। मैं देख रहा हूं, आज सर्वत्र भौतिकता प्रभावी हो रही है। मानव भौतिक ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति के लिए बेतहाशा दौड़ रहा है। वह इस शाश्वत सचाई को क्यों नहीं समझ रहा है कि संयम के अभाव में सभी प्रकार की भौतिक ऋद्धियां - सिद्धियां निरर्थक प्रमाणित होती हैं, बल्कि व्यक्ति के अहित और अनिष्ट का कारण भी बनती हैं? हमने अणुव्रत आंदोलन के नाम से एक संयममूलक कार्यक्रम चला रखा है। इसका मुख्य उद्देश्य यही है कि जनजीवन में संयम का उच्च मूल्य प्रतिष्ठित हो । व्यक्ति-व्यक्ति स्वयं से संयम - साधना की शुभ शुरुआत करे। इससे उसका स्वयं का जीवन तो ऊंचा उठेगा ही, दूसरों के लिए भी वह सहज प्रेरणा-स्रोत बन सकेगा, भौतिकता एवं असंयम के अरण्य में भटकते लोगों को भी इस राजपथ पर ला सकेगा। इस प्रकार जीवन सुधार का यह अभियान व्यक्ति से आगे बढ़ता हुआ समाज और राष्ट्र को स्वस्थ एवं उन्नत बनाना चाहता है। मैं आशा करता हूं कि आप लोग संयम का सही-सही मूल्यांकन करते हुए इस कार्यक्रम के साथ जुड़ेंगे - न केवल वैचारिक समर्थन के स्तर पर, अपितु इसके छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार करके क्रियात्मक स्तर पर भी । इससे आपके जीवन के अभ्युदय की दिशा उद्घाटित हो जाएगी। राजभवन, पटना १० जनवरी १९५९ संयम ही जीवन है Jain Education International For Private & Personal Use Only ३१० www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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