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के जीवन का साध्य बन गया है, जबकि वह जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति का मात्र साधन है। अर्थ की इस अस्थानीय प्रतिष्ठा ने वैचारिक एवं आचरणाात्मक अनेक विकृतियां पैदा की हैं। व्यक्ति पैसे की प्राप्ति के लिए नीचे-से-नीचे स्तर तक उतर आता है। आश्चर्य है, उसे ऐसा करते कोई संकोच और शर्म महसूस नहीं होती! मेरी दृष्टि में अनुचित साधनों से उपार्जित धन के आधार पर बना धनी आंतरिक दृष्टि से दरिद्र है, महादरिद्र है। व्यापारी लोग इस बिंदु पर गंभीरता से चिंतन करें। चिंतन का तात्पर्य है, वे सलक्ष्य इस दारिद्रय से बचें। यदि दुर्भाग्य से कहीं यह आ गया है तो इसे प्रयत्नपूर्वक दूर करें, संकल्पपूर्वक दूर करें। संकल्प में अचिंत्य शक्ति होती है। वह कठिन को भी सरल बना देता है। अणुव्रत-आंदोलन आपके लिए पथ का आलोक है। उसके अंतर्गत व्यापारियों के लिए निर्धारित छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार कर आप अपने जीवन को सही दिशा दे सकते हैं। आशा करता हूं, आप सही दिशा में प्रयाण करेंगे।
वाणिज्य मंडल, पटना १० जनवरी १९५९
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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