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________________ ११ : व्यापारी आंतरिक दरिद्रता मिटाएं आज मुझे व्यापारियों से कुछ कहना है। व्यापारी लोगों का अपना व्यक्तिगत जीवन तो होता ही है, उन्हें समाज व राष्ट्र की भी एक महत्त्वपूर्ण संपत्ति माना जाता है, आदान-प्रदान के प्रमुख स्रोत होने कारण वे जन-संपर्क के प्रमुख केंद्र भी हैं। अतः समाज और राष्ट्र पर उनकी प्रतिच्छाया पड़ना स्वाभाविक है। उनके सद्गुणों की प्रतिच्छाया पड़ती है तो दुर्गुणों की भी पड़ती है। मैं व्यापारियों से कहना चाहता हूं कि वे यह बात ध्यान में रखते हुए अपने जीवन में एक नया मोड़ लें, पर मेरे इस कथन का कोई व्यापारी यह अर्थ न निकाले कि मैं व्यापार-व्यवसाय छोड़ने के लिए कह रहा हूं। यह व्यावहारिक बात नहीं है। मैं अव्यावहारिक बात नहीं कहना चाहता। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि वे अपना व्यावसायिक व्यवहार शुद्ध बनाएं। चोरबाजारी करना, बेमेल मिलावट करना, नकली को असली बताकर बेचना, तौल-माप में कमीबेशी करना, विश्वासघात करना-जैसी दुष्प्रवृत्तियों से बचें। वे यह बात समझें कि ऐसी प्रवृत्तियां मानवता पर कलंक हैं। वे यह कभी न भूलें कि वे पहले मानव हैं, फिर व्यापारी। इसलिए ऐसी दुष्प्रवृत्तियों के द्वारा वे मानवता की होली न खेलें। कुछ लोग युगीन परिस्थितियों का तर्क देते हैं। वे कहते हैं कि आज परिस्थितियां ही कुछ ऐसी हैं कि व्यापारियों को गलत काम करने पड़ते हैं। यदि न करें तो उनका काम नहीं चलता। वे एकदम गरीब रह जाते हैं। इस प्रकार के तर्क देनेवाले लोगों से मैं कहना चाहूंगा कि वे निर्धन, जो सदाचार को जीते हैं, अप्रामाणिक और अनैतिक काम नहीं करते, उन लखपतियों एवं करोड़पतियों के बनिस्बत कहीं अच्छे हैं, जो शोषण, धोखा, अनाचार और बेईमानी से अर्थोपार्जन करते हैं। वह गरीबी भी उनके लिए शृंगार है, जबकि उन लखपतियों, करोड़पतियों के लिए वह अमीरी अभिशाप है। मुझे ऐसा लगता है कि आज अर्थ लोगों व्यापारी आंतरिक दरिद्रता मिटाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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