________________
शिक्षा का उद्देश्य
गहराई से देखा जाए तो शिक्षा का उद्देश्य जीवन का सर्वांगीण विकास करना है। इस दृष्टि से सही शिक्षा वही है जो इस कसौटी पर खरी उतरे। सर्वांगीण विकास के लिए तीन बातें आवश्यक हैं--१. भौतिक ज्ञान २. बौद्धिक ज्ञान ३. आत्मिक ज्ञान।।
भौतिक ज्ञान भौतिक या बाह्य पदार्थों की सम्यक जानकारी के लिए आवश्यक है। जीवन का यह एक पक्ष है। मानसिक विकास जीवन का दूसरा पक्ष है। इसके लिए बौद्धिक ज्ञान अपेक्षित है। जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष है-आध्यात्मिक विकास। यह आत्मिक ज्ञानसापेक्ष है। आज की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष गौण
और उपेक्षित हो गया है। इसकी दुष्परिणति हमारे सामने हैं। संसार में चारों ओर हाहाकार मचा है, सृजन के नाम पर संहार हो रहा है। अनाचार तेजी से बढ़ रहा है। हम यह बात समझें कि भैतिक और बौद्धिक ज्ञान पर आत्मिक ज्ञान का नियंत्रण न होना एक खतरनाक स्थिति है। इससे अनाचार को फैलने का खुला मौका मिल जाता है। चूंकि आज की शिक्षा-प्रणाली भौतिक एवं बौद्धिक ज्ञान तक अपना ध्यान केंद्रित किए हुए है, इसलिए इस स्थिति के निर्माण की बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी उसी की है। वह अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। अपेक्षा है, इस बिंदु पर गंभीरता से चिंतन हो और आत्मिक ज्ञान विकसित करने के लिए सुनियोजित प्रयत्न किया जाए। जरूरी है धार्मिक शिक्षा ___ इस अपेक्षा की पूर्ति के लिए आवश्यक है कि धार्मिक शिक्षा अनिवार्य पाठ्यक्रम में जोड़ी जाए। यद्यपि इस कार्य में एक कठिनाई अवश्य है कि कौन-से धर्म की शिक्षा दी जाए। इस संदर्भ में मैं शिक्षाधिकारियों को समाधान और सुझाव की भाषा में कहना चाहता हूं कि वे सभी धर्मग्रंथों का निचोड़ निकालें और उसे व्यवस्थित रूप देकर चालू पाठ्यक्रम में जोड़ दें। मैं मानता हूं कि भेद विभिन्न धर्म-संप्रदायों की उपासनापद्धतियों में है, धर्म के मौलिक सिद्धांत तो सबके एक ही हैं। उनमें भेदजैसी कोई बात नहीं है। मैं पूछना चाहता हूं कि सत्य को कौन-सा धर्मसंप्रदाय नहीं मानता; अहिंसा में किस धर्म-संप्रदाय की आस्था नहीं है। सत्य और अहिंसा की तरह ही और भी अनेक ऐसे तत्त्व हैं, जिन्हें सभी
स्वतंत्र भारत और वर्तमान शिक्षा-प्रणाली
• २७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org