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१० : स्वतंत्र भारत और वर्तमान शिक्षा प्रणाली
अंक बिना शून्य की कीमत नहीं
आज की इस सभा में विश्वविद्यालय एवं विभिन्न महाविद्यालयों के विभागाध्यक्ष, प्राचार्य तथा प्राध्यापक उपस्थित हैं । उच्च शिक्षा क्षेत्र के दायित्वशील लोगों के बीच अपने विचार रखते हुए अत्यंत प्रसन्नता है । आज की शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों के बाह्य जीवन - विकास की दृष्टि से काफी ध्यान दिया गया है, पर आंतरिक विकास की बात उपेक्षित-सी है, बल्कि कहना चाहिए कि उस दृष्टि से ध्यान ही नहीं दिया गया है। यह एक भयंकर भूल हुई है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आंतरिक विकास के बिना बाह्य या भौतिक विकास अधूरा है। जिस प्रकार अंक के बिना शून्य की कोई कीमत नहीं होती, उसी प्रकार आंतरिक विकास के अभाव में भौतिक विकास की कोई सार्थकता प्रकट नहीं होती। इस आंतरिक विकास के लिए संयम की आवश्यकता होती है, जो कि आध्यात्मिक शिक्षा से ही संभव है।
शिक्षा के दो रूप
-का
शिक्षा के दो पक्ष हैं-ग्रहण शिक्षा और आसेवन शिक्षा । दोनों ही पक्ष अपने-आपमें आवश्यक और महत्त्वपूर्ण हैं, पर वर्तमान शिक्षा तो मात्र ग्रहण शिक्षा है। आसेवन शिक्षा तो उपेक्षित-सी कर दी गई है। इसका दुष्परिणाम हमारे सामने है। विद्यार्थियों का जीवन कोरा - कोरा रह जाता है। सीखा हुआ ज्ञान उनके आचरण में नहीं आता । जब तक इस ओर ध्यान नहीं दिया जाएगा, विद्यार्थियों का आचरण उन्नत नहीं बन सकता। इसके लिए संयम का अभ्यास अपेक्षित है; और संयम के अभ्यास के लिए अध्यापकों को अपने जीवन और जीवन-व्यवहार से पढ़ाना होगा । पुस्तकीय पढ़ाई वहां काम नहीं देगी ।
ज्योति जले : मुक्ति मिले
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