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९ : जीवन की सार्थकता
चार दुर्लभताएं भगवान महावीर ने कहा
चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो।
माणुसत्तं सुई सद्धा, संजमंमि य वीरियं॥ - चार बातें प्राणी के लिए परम दुर्लभ हैं। वे हैं-मनुष्यत्व की
प्राप्ति, सही तत्त्व का श्रवण, सुनकर उस पर श्रद्धा और संयम में पराक्रम।
इनमें पहली बात मनुष्यत्व की दुर्लभता की है। सड़क से गुजरते हुए हमने पूरे आकारवाला एक मनुष्य देखा। उसकी आंत-आंत दिखाई पड़ रही थी। कहने को वह भी मनुष्य था, पर जीवन न होने के कारण वस्तुतः वह अस्थि-पंजर मात्र था। इसी प्रकार आज ऐसे मनुष्य बहुत कम हैं, जिनमें जीवन का सही सत्त्व हो। वे कहने भर के मनुष्य हैं।
__ मनुष्य जीवन प्राप्त करके भी सबको सही तत्त्व सुनने का अवसर उपलब्ध नहीं होता। कुछ-एक व्यक्ति ही यह अवसर प्राप्त कर पाते हैं, फिर आज तो लोगों की जीवन-चर्या ही इतनी व्यस्त हो गई है कि उन्हें जीवन-निर्माण की बातें सुनने का समय ही नहीं मिलता। एक कारण यह भी है कि सही तत्त्व की बात सुनानेवाले लोग भी बहुत कम मिलते हैं। फिर बौद्धिक लोगों में तो सदुपदेश सुनने की प्रवृत्ति ही कम है। श्रद्धाहीनता बड़ी बुराई है
सुनने का अवसर भी मिल जाता है तो उस पर श्रद्धा होना दुर्लभ है। मैं देख रहा हूं, आज सम्यक श्रद्धा का तो मानो अकाल-सा पड़ गया है। सत्य, ईमानदारी, प्रामाणिकता, नैतिकता आदि तत्त्वों के प्रति आदमी अनास्थाशील बन रहा है। वह यह मानने को तैयार नहीं है कि इन तत्त्वों से जीवन-व्यवहार चल सकता है। मेरी दृष्टि में यह मानव का बहुत
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