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________________ है। इसे मैं निरर्थक नहीं मानता, पर विद्यार्थियों एवं अध्यापकों से मैं पूछना चाहता हूं कि क्या इस शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ-साथ आपका आंतरिक बीमारियों की चिकित्सा पर भी कुछ ध्यान है। मेरी दृष्टि में आंतरिक स्वस्थता भी शारीरिक स्वस्थता की तरह ही आवश्यक है, बल्कि कहना चाहिए कि अपेक्षाकृत ज्यादा आवश्यक है, सर्वथा अनुपेक्षणीय है। यह कैसी स्थिति है कि चंद्रलोक में आबाद होने का ख्वाब भरनेवाला मानव अपने मूल आधार से बेखबर है! वह इस बिंदु पर चिंतन ही नहीं करता कि गुणात्मक दृष्टि से वह मानव है या नहीं। आज मानव की जो स्थिति है, वह आप सबसे अज्ञात नहीं है। मानव की मानवता का बड़ी तीव्र गति से लोप होता जा रहा है। इसी का यह दुष्परिणाम है कि सर्वत्र अशांति और संघर्ष का वातावरण बना हुआ है। मेरी दृष्टि में यह सबसे भयंकर आंतरिक बीमारी है। काय-चिकित्सा के प्रशिक्षकों एवं विद्याध्येताओं को इस बारे में सोचना है, बल्कि गहराई से सोचना है। सोचने से मेरा तात्पर्य है कि उन्हें काय-चिकित्सक के साथ-साथ आत्म-चिकित्सक भी बनना है। इसके लिए सबसे पहले उन्हें स्वयं आत्मव्याधियों से छुटकारा पाना होगा। अणुव्रत-आंदोलन की चर्चा अभी आपके समक्ष की गई। यह आंदोलन और कुछ नहीं, बस मानव की आंतरिक बीमारियों की चिकित्सा कर उसे स्वस्थता प्रदान करने का उपक्रम है। वे आंतरिक बीमारियां अनाचार, भ्रष्टाचार, झूठ, फरैब, वैमनस्य आदि विविध रूपों में प्रकट हो रही हैं। अध्यापकों और विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे इस आंदोलन की आत्मा से परिचित होकर इसके छोटे-छोटे संकल्प स्वीकार करें। इससे उनका स्वयं का जीवन तो स्वस्थ बनेगा ही, समाज और राष्ट्र की स्वस्थता में भी वे हेतुभूत बन सकेंगे। जीवन का स्वर्णिम काल ___ कॉलेज के विद्यार्थियों से एक-दो बातें विशेष रूप से कहना चाहता हूं। वे सामंजस्य की चेतना जाग्रत करने का प्रयत्न करें। छोटे-मोटे विवाद आपसी समझ, पारस्परिक नैकट्य, आत्मीयता और लचीले दृष्टिकोण के द्वारा सुलझाने का प्रयास करें। यह संभव है कि कॉलेजप्रशासन के कुछ निर्णयों से वे संतुष्ट न हों। उनकी अपनी कुछ मांगें भी हो सकती हैं। मैं यह नहीं कहता कि वे अपना विरोध न जताएं, अपनी उचित मांगें न रखें। इसके लिए वे सावकाश हैं, पर इस हेतु अनशन-जैसा आत्म-शुद्धि का पवित्र साधन हथियार के रूप में काम लिया आत्म-चिकित्सक बनें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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