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है। आपकी तरह ही दूसरे-दूसरे वर्गों के लोगों के सामने भी तो ऐसी ही स्थिति है, फिर आप उन्हें दोष क्यों देते हैं ? उनमें व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चा क्यों करते हैं ? आप पहले स्वयं सुधरें। स्वयं सुधरकर ही आप दूसरों को कहने के अधिकारी बन सकेंगे। इसके लिए आपको वेद और आगम पढ़ना जरूरी नहीं है। पिटक, कुरान, गुरुग्रंथसाहिब आदि देखना आवश्यक नहीं है। उसका तो एक छोटा-सा सूत्र है-संपिक्खए अप्पगमप्पएणं। यानी आत्म-निरीक्षण। जीवन में बदलाव लाने का यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूत्र है। आपमें से प्रत्येक व्यक्ति आत्म-निरीक्षण करे, अपने जीवन पर सूक्ष्मता से ध्यान दे कि उसमें कौन-कौन-सी बुराइयां घर किए हुए हैं। आत्म-निरीक्षण की प्रक्रिया से गुजरते हुए जो-जो बुराइयां ध्यान में आएं, उन्हें एक-एक कर बाहर कर दे। इस प्रकार उसका जीवन शुद्ध हो जाएगा, अपने-आपमें सुरक्षित हो जाएगा। दूसरों की रक्षा करने में सक्षम बन जाएगा। उसका रक्षक कहलाना सार्थक बन जाएगा। बहुत-सी समस्याओं की जड़
मुझे ऐसा प्रतिभासित होता है कि बहुत-सी समस्याओं की जड़ व्यक्ति की असीमित लालसा है। आप जीते हैं भारतवर्ष में, नौकरी करते हैं भारतवर्ष में, वेतन पाते हैं भारतवर्ष में और उड़ान भरते हैं-रूस के रॉकेट की तरह ! यह कहां तक उचित है? आप धनकुबेर बनने की लालसा छोड़ें, अपनी आवश्यकताएं सीमित करें। आकांक्षा का कोई अंत नहीं होता। वह आकाश की तरह अनंत है। मद्यपान घातक है
मैं पूछना चाहता हूं कि आप मदिरा क्यों पीते हैं। रोटी की आवश्यकता समझ में आती है, दूध भी आवश्यक हो सकता है, पर मदिरा तो आवश्यक नहीं। फिर मदिरा तो बहुत नुकसानदेह भी है, बहुतसी बुराइयों की जननी भी है। मद्यपान के परिणाम बहुत ही घातक हैं। क्या आप नहीं जानते कि यादव वंश का नाश इसी के कारण हुआ था? वस्तुतः मदिरा व्यक्ति का मस्तिष्क ठिकाने नहीं रहने देती, उसे असंतुलित और उन्मत्त बना देती है। आप जरा सोचें कि जब व्यक्ति का दिमाग ही ठिकाने नहीं होगा, संतुलित और स्वस्थ नहीं होगा, तब वह गलत काम कैसे नहीं करेगा, बुराइयों में प्रवृत्त कैसे नहीं होगा। मैं पूछना
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- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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