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________________ (२५०) • जो नम्र होता है, वह सहज ही दूसरों को अपनी और आकृष्ट कर लेता है। (२५०) • एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति घृणा का मनोभाव रखे-यह कितनी दयनीय मनोदशा है! (२५०) • यौवन उम्र से भी कहीं अधिक विचारों पर निर्भर करता है। (२५१) • वही विकास और निर्माण श्रेयस्कर है, जिसमें आत्मा और जीवन का विकास होता हो, निर्माण होता हो। (२५६) • घृणा मात्र बुराई के प्रति होनी चाहिए, बुरे आदमी के प्रति नहीं, क्योंकि बुराई कभी सुधर नहीं सकती, वह अच्छाई नहीं बन सकती, जबकि बुरा आदमी सुधरकर अच्छा आदमी बन सकता है। (२६०) • किसी के न अपनाने से अहिंसा हिंसा नहीं बन सकती। (२९६) • मैत्री जीवन के परिष्कार का पहला और जीवन की ऊंचाई का चरम सोपान है। (२९८) • मैत्री जीवन की शांति का सर्वोच्च वरदान है। (२९८) • स्वाधीनता सबसे बड़ा आनंद और सबसे बड़ा उल्लास है। (३०२) • एक बड़े-से-बड़ा ज्ञानी आचारभ्रष्ट हो सकता है, पर एक शुद्धाचारी कभी ज्ञानभ्रष्ट नहीं हो सकता। (३०४) । स्वयं को त्याग की कसौटी पर कसना ही आत्मोन्नति का मार्ग है। (३०६) • पुरुषार्थ का अंतिम निष्कर्ष ही भाग्य है। (३०७) • अहिंसा आध्यात्मिक जगत का सर्वोच्च तत्त्व है। (३०९) • अहिंसा वीरों का धर्म है। (३०९) • संयम जीवन का विकास है और असंयम ह्रास। (३११) • आर्य कोई जातिविशेष नहीं है। वह तो एक गुणात्मकता का नाम है। जिसका स्वधर्म यानी आचरण उन्नत है, वह आर्य है। (३१७)। • क्षमा मांगना सचमुच ही अमृत की धार बहाना है। इससे विष ही नहीं धुलता, मैत्री का महान प्रवाह भी चल पड़ता है। (३२२) प्रेरक वचन - ३७७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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