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• मैत्री और अहिंसा दो तत्त्व नहीं हैं। मैत्री के बिना अहिंसा नहीं होती और
अहिंसा के बिना मैत्री का कोई अर्थ नहीं होता। (३२२) • जिसमें संयम नहीं, उसकी अर्चना छलना हो जाती है। (३२३) • बच्चों को ज्यादा पीटना उन्हें अपने हाथ से गंवा देना है। (३४२)
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-- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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