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होते हैं। बहुत-सी माताएं छोटे बेटे के प्रति अधिक स्नेह रखती हैं, एक का पक्ष लेती हैं। बेटी को छुप-छुपकर, लड़के और बहू की आंख चुराकर जबतब कुछ-न-कुछ देती रहती हैं। माताओ! यही मूल में भूल है। माता, पिता का बेटी पर अधिक जी होता है। वह देना भी चाहती है, पर लुक-छिप कर क्यों ? बहनो! माताओ! इससे घर में द्वैध पैदा होता है, मन-मुटाव होता है। भीतर-ही-भीतर आग सुलगती है। वह न जाने कब भभक उठे।
___माताएं हों या पुत्र, उन्हें चाहिए कि वे अपने व्यवहार, आचरण और दैनिक कार्यकलापों से घर में कलह न होने दें। आपसी मन-भेद छोटी-छोटी बातों के कारण ही हुआ करता है। आखिर दोनों हाथ मिलाने से ही धुलेंगे। न केवल माताओं को, न केवल पुत्रों को, अपितु दोनों को ही समझना है। वे अपना चिंतन, व्यवहार और आचरण सम्यक बनाएं।
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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