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________________ १४२ : जीवन और अर्थ श्रवण का उद्देश्य जीवन-परिष्कार हो केवल आना और सुनना आज एक रिवाज बन गया है। लोगों ने मान लिया है कि हमें प्रवचन में जाना है और सुनना है। उस आने और सुनने का क्या अर्थ, जब आकर और सुनकर जीवन में बदलाव लाने की दृष्टि से कुछ किया नहीं जाता ? मंत्री लोग भले ही अपने जीवन के बारे में न बनाते हों, पर उनकी घर-भर नीतियां छिपी नहीं हैं। बावजूद इसके, उनका यह कथन तो गलत नहीं है कि व्यापारी कहते बहुत हैं, पर करते नहीं। मंत्री लोग व्यापारियों को बुरा बताते हैं तो व्यापारी मंत्रियों को, पर एक-दूसरे को बुरा बताकर अपना बोझा हलका नहीं किया जा सकता। ___ आज सबको कहना तो आता है, पर करना नहीं आता। यह बड़ा सर-दर्द है। कहनी-करनी का भेद दुःखता है, पीड़ा करता है। मैं प्रायः रोज ही बोलता हूं। कभी-कभी तो दिन में कई बार बोलना होता है, पर लोगों की मनःस्थिति देखते हुए कई बार मन में चिंतन आता है कि मैं रोज-रोज क्यों बोलूं। कुछ लोग मेरे बोलने में होनेवाले श्रम को लक्ष्य कर हमदर्दी के स्वर में कहते हैं कि आप दो-दो बार, तीन-तीन बार खून को पसीना कर क्यों बहाते हैं। बोलना मेरा पेशा नहीं, धंधा नहीं। आजीविका का साधन नहीं। अगर सुननेवाले के मन में मेरे प्रति सच्ची हमदर्दी है, भक्तजनों के मन में मेरे पसीने के प्रति चिंता है तो वे मेरा कथन यथासंभव स्वीकार करें। यदि मेरा कहना ठीक नहीं है तो उसका प्रतिकार करें, प्रतिवाद करें। या तो वे स्वयं समझ लें या मुझे समझा दें। पुराने लोग कहा करते थे कि घाव में दर्द होना चाहिए। बिना दर्द का घाव खराब या गंदा माना जाता है। श्रोताओं के मन में भी दर्द होना चाहिए। मैं स्वार्थ के लिए तो नहीं बोलता। मैं तो चाहता हूं कि मेरी वाणी का तीर सीधा किसी की बुराई पर चोट करे, किसी का हृदय बींधे। अनैतिकता की जीवन और अर्थ -- ३४५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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