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१४० : अज्ञ
और मूढ़
अज्ञ वह है, जिसमें ज्ञान न हो और मूढ़ वह है, जो जानबूझकर भी विभ्रम में हो। विवेक-विकल प्राणी ज्ञान-विकास के अभाव में यह निर्णय तक नहीं कर पाता कि हित क्या है और अहित क्या है, ग्राह्य क्या है और त्याज्य क्या है। उसके लिए गुड़ और अफीम दोनों एक सरीखे हैं। गुड़ की पौष्टिकता और अफीम की मादकता वह नहीं पहचान पाता।
बाजार में सब ग्राहक भी समान नहीं होते। कोई अच्छे घी के बदले खराब घी भी ले लेता है। एक बार माताजी ने मुझे घी लाने के लिए बाजार भेजा-'बेटा! जा घी ले आ।' बाजार गया, पर मैं क्या जानूं घी की परीक्षा। फिर उस समय तो अच्छे-बुरे की बात मेरी जानकारी में ही नहीं थे। ऐसी स्थिति में मैं सोचता भी कैसे कि कोई घी खराब भी होता है? मुझे जहां जाने का कहा गया था, मैं वहां न जाकर किसी दूसरी ही दुकान से घी ले आया। भद्र-प्रकृति माता वदना जी ने बड़े प्रेम से कहा-'बेटा! घी तो खराब ले आया।' मैं बचपन की भाषा में बोला-'क्या कोई घी भी खराब होता है?' मां ने गंध लेने को कहा। मैंने गंध ली, पर मुझे पता नहीं चला। जब वह घी बरता गया, तब मुझे मालूम हुआ अपनी अज्ञता का परिणाम। अक्सर उपयोगी तत्त्वों के विषय में भी यही होता है। व्यक्ति जानकारी के अभाव में खराब और अच्छे का भेद नहीं कर पाता, परंतु इस स्थिति में कोई आकड़े (अर्क) का दूध, गाय का दूध मानकर पीले तो? वह तो अपना विषाक्त परिणाम दिखायेगा-ही-दिखायेगा। यह अज्ञता बुरी है, तथापि अधिकतर प्राणियों में होती है।
कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनमें ज्ञान तो है, किंतु मंदा मोहेण पाहुडावे मोहावेश में है। वे जानते हैं, पर जानबूझकर भी अनजान हैं। आप देखें, शराबी शराब के घातक परिणाम जानता हुआ भी उसे अच्छी मानकर पीता है और पागल हो जाता है। यहां समझने की बात यह है अज्ञ और मूढ़
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