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________________ ६ : विद्यार्थियों की जीवन-दिशा विद्याभ्यास क्यों विद्यार्थियों की वह विशाल परिषद देखकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। चंकि मैं भी एक विद्यार्थी हैं, इसलिए विद्यार्थियों के बीच आने और उनसे अपनी बात कहने में सहज प्रसन्नता होना स्वाभाविक है। मेरी दृष्टि में विद्यार्थीकाल जीवन का सर्वोत्कृष्ट काल है। क्यों ? यह इसलिए कि यह निर्माण का समय है। इस काल में जीवन-निर्माण की प्रक्रिया चलती है। गहराई से देखा जाए तो विद्याध्ययन का मूलभूत उद्देश्य जीवन-निर्माण ही है। यदि वर्षों के विद्याध्ययन के बाद भी जीवन निर्मित नहीं हुआ, सुसंस्कारित नहीं बना, उसमें सद्गुणों की महक नहीं फूटी तो उसकी क्या सार्थकता है? प्राप्त उपाधियों की क्या उपयोगिता है ? भारतीय संस्कृति के आचार्यों ने विद्या को परिभाषित करते हुए कहा- सा विद्या या विमुक्तये-विद्या वही है, जो जीवन को विमुक्ति की दिशा में ले जाए, उसे दुर्गुणों, दुर्वृत्तियों और कुसंस्कारों के दुर्धर्ष बंधन से छुड़ा सद्गुणों, सत्प्रवृत्तियां एवं सत्संस्कारों के विशुद्ध वातावरण में लाए। भगवान महावीर ने विद्याध्ययन के उद्देश्यों का निरूपण करते हुए कहा • सुयं मे भविस्सइ त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। • एगग्गचित्तो भविस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। • अप्पाणं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। • ठिओ परं ठावइस्सामि त्ति अज्झाइयव्वं भवइ। • 'मैं ज्ञानी बनूंगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए। • 'मैं एकाग्रचित्त बनूंगा' इसलिए अध्ययन करना चाहिए। • 'मैं अपनी आत्मा को धर्म (शुद्ध आचार-विचार) में स्थापित .१२. - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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