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________________ परंतु खेद है कि आज की दुनिया इस ओर सर्वथा उदासीन है। जब तक सहनशीलता एवं क्षमा की भावना न आ जाए, तब तक शांति कैसे संभव है ? क्षमाशील व्यक्ति ही अपनी लक्ष्य-प्राप्ति में समर्थ व सफल होते हैं। इस प्रसंग में एक जैनाचार्य का उदाहरण सर्व-साधारण के लिए अधिक उपादेय है, जिसमें हम सहनशीलता की वास्तविकता पा सकते हैं। उन्होंने भांति-भांति के कष्ट एवं मतविरोध सहकर भी एक आदर्श साधु-संस्था की स्थापना की। उन महान क्रांतिकारी एवं नवजाग्रति के प्रसारक महापुरुष का नाम था-आचार्य श्रीमद भिक्षु स्वामी और उस आदर्श संस्था का नाम है-श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ। यह संस्था अब तक उसी लक्ष्य पर डटी हुई आज भी धर्म प्रचार का कार्य कर रही है। दुनिया के सामने जैन-धर्म के पुनीत एवं मंगलमय आदर्श रख जनता का जीवन-स्तर उन्नत बनाना एवं विश्व में शांति का प्रसार करना इस संस्था का मूलभूत उद्देश्य है। इस संस्था ने आज पर्यंत किसी व्यक्ति, जाति एवं धर्म पर आक्षेप नहीं किया। इसकी कार्यशैली लोगों के सामने अपने अभिमत/सिद्धांत रखने की रही है। उन्हें यदि कोई माने तो उसकी इच्छा है और न माने तो उसके लिए कोई बल-प्रयोग नहीं, क्योंकि धर्म का आचरण हृदय की भावना से हो सकता है, हठ से नहीं। उस महर्षि ने भगवान महावीर की वाणी दुहराकर यह घोषणा की थी कि धर्म और जबरदस्ती का परस्पर कोई संबंध नहीं है। जहां-कहीं अन्याय मिटाने के लिए बल-प्रयोग किया जाता है, वह राजनीति है, धर्म नहीं है। धर्म सत्य-उपदेश की अपेक्षा रखता है, विवशता की नहीं। जहां कोई मनुष्य अधार्मिक को भी विवश करके धार्मिक बनाने की चेष्टा करता है, वह भी धर्म नहीं है। चूंकि जहां विवशता है, अतः वहां स्पष्ट हिंसा है; और जहां हिंसा है, वहां धर्म कैसे? धर्म तो व्यक्ति की सत्प्रवृत्ति पर ही निर्भर रहता है। अतएव धर्म और राजनीति-दो अलग-अलग तत्त्व हैं। बहुलांश में इनका सम्मिश्रमण ही आज के दुःखद वातावरण का हेतु बन रहा है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज भारतवर्ष में सर्वत्र दिखाई दे रहा है। बंगाल, बिहार एवं पंजाब के हत्याकांड इसी के परिणाम हैं। अतः अब भी समझने की आवश्यकता है। राजनीति एवं धर्म के कार्यक्षेत्र की पृथक्ता का बोध होना जरूरी है, अन्यथा धर्म के प्रति घृणा हुए बिना नहीं रहेगी। राजनीति में स्वार्थ के संघर्ष होते रहते हैं और धर्म केवल निःस्वार्थ साधना का तत्त्व है। स्वार्थी पुरुष राजनीति में उसका ऐसा धर्म की आत्मा को पहचानें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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