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________________ धार्मिक-सम्मेलनों की सफलता कब मैं धर्म के प्रचारार्थ किए जानेवाले निरवद्य प्रयत्नों की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं और इसके साथ-साथ सलाह देता हूं कि सिर्फ धार्मिक पुरुषों का सम्मेलन एवं उनकी सम्मतियों का एकीकरण ही धर्म - वृद्धि, धर्म-रक्षा एवं उसके प्रचार के लिए पर्याप्त नहीं हैं, प्रत्युत इसके साथसाथ धर्म की मौलिकता, असलियत एवं उपयोगिता का परीक्षण होना चाहिए। प्रत्येक मनुष्य के हृदय में धर्म-तत्त्व जंचा देना चाहिए और ऐसी खूबी के साथ श्रद्धा पैदा कर देनी चाहिए कि समूची दुनिया धर्म की आवश्यकता एवं उपयोगिता महसूस कर सके। इस प्रकार के कार्य ऐसे सम्मेलनों के अवसर पर किए जाएंगे, तभी हम गौरव के साथ कह सकेंगे कि धार्मिक सम्मेलनों के उद्देश्य आज सफल होने जा रहे हैं और ये प्रयास सर्वांगीण सफल हो रहे हैं। धर्म सबका एक है धर्म के महान आदर्श देखकर एक ओर लोग उसके प्रति आकृष्ट होते हैं तो दूसरी ओर भिन्न-भिन्न संप्रदाय देखकर उससे भय खाने लग जाते हैं और यहां तक कि समूचे धर्म से ही विमुख बन जाते हैं, परंतु सच तो यह है कि धर्म में अनेकता यानी विरोध है ही नहीं । जो विरोध झलकता है, वह स्वार्थ का युद्ध है। धर्म का उद्देश्य जीवन का विकास करना है, अतः वह सबके लिए एक है। यह अहिंसा हमारी और यह अहिंसा तुम्हारी - इस प्रकार का भेद धर्म में कदापि नहीं हो सकता। यह नियम धर्म के प्रत्येक अवयव पर लागू होता है। धर्म रूदि नहीं, किंतु एक वास्तविक सत्य है। धर्म प्रत्येक व्यक्ति के लिए अभिन्न है । धर्म का अस्तित्व मैत्री में है और उसके लिए ही लोग आपस में कलह करें, क्या यह धर्म का उपहास नहीं है ? क्या यह अचंभे की बात नहीं है कि जो धर्म एक दिन स्वार्थ के द्वारा होनेवाले झगड़े का निपटारा करता था, उसी धर्म के लिए आज लोग आपस में लड़ रहे हैं ? सचमुच यह अचंभे से भी अधिक गहरे दुःख की बात है। आज का धर्मप्रेमी नागरिक यदि धर्म के द्वारा स्वार्थजन्य संघर्ष न रोक सके तो कम-से-कम उसके नाम पर विरोध का प्रचार तो न करे । आचार्य भिक्षु और तेरापंथ सहिष्णुता एवं क्षमा की भावना धर्म के मूल गुणों में से एक है, ज्योति जले : मुक्ति मिले ३३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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