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संकल्प दोहराने से उनका नवीनीकरण होता है। व्रतों की मर्यादा
नदी के दोनों तट प्रवाह को अवरुद्ध नहीं करते, अपितु उसे वेगवान बनाते हैं। अणुव्रतियों का जीवन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। जो प्रवेशक अणुव्रती थे, वे अणुव्रती और जो अणुव्रती थे वे विशिष्ट अणुव्रती बने हैं। प्रवेशक अणुव्रती बनने से जो घबराते थे, वे प्रवेशक और अणुव्रती भी बने हैं। उनके अणुव्रती बनने से पूर्व का जीवन और उसके बाद का जीवन देखने से लगता है कि आंदोलन ने उन्हें एक सही दिशा और गति दी है। आज वे कार्यकर्ता के रूप में तैयार हैं। अणुव्रतियों का कर्तव्य
अणुव्रतियों को चाहिए कि वे केवल व्रतों की शब्दावली ही न पकड़ें, बल्कि उनकी भावना समझकर उनका पालन करें। वृक्ष के बाह्य आकार की अपेक्षा उसकी जड़ दृढ़ होती है। जिस प्रकार जड़ की दृढ़ता के बिना वायु के वेग से उसके गिरने का खतरा रहता है, उसी प्रकार अणुव्रती भी अपना व्रत-मूल सुदृढ़ करें। व्रतों की अंतरात्मा-भावना समझें और उनका निष्ठा से पालन करें। यह बात भी न भूलें कि अपने जीवन के निर्माण के साथ-साथ उन्हें दूसरों का भी पथ-दर्शन करना है। कम-से-कम पांच अणुव्रती बनाना प्रत्येक अणुव्रती का कर्तव्य है।
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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