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________________ १३७ : व्रत-चेतना जागे व्रतों का माहात्म्य भारतीय संस्कृति त्यागप्रधान संस्कृति है। उसमें आध्यात्मिक अभियान में अग्रसर होनेवालों के लिए व्रतों की महती आवश्यकता है। जो अव्रती हैं, उन्हें व्रत ग्रहण करने चाहिए। जो व्रती हैं, उन्हें अपने संकल्प दोहराने चाहिए। दोहराने से संकल्पों में दृढ़ता और ताजगी आती है। उपलब्ध सामग्री छोड़ना त्याग है और अप्राप्त को प्राप्त न करना भी त्याग है। प्रश्न किया जा सकता है कि जिसके पास नहीं है, वह क्या त्याग करे और उसके त्याग का क्या महत्त्व है। वर्तमान में नहीं है, पर क्या भविष्य में भी उसके पास नहीं हो सकता? त्याग का महत्त्व इसलिए है कि भविष्य में उसे प्राप्त करने आकर्षण मिटता है। इस माने में व्रती बनने के सभी अधिकारी हैं। व्रतों की भूमिका व्रत ग्रहण करने से पहले मनुष्य को तदनुकूल भूमिका बनानी चाहिए। व्रत एक बीज है। उर्वरा भूमि में बीज फलित होता है। उसके अभाव में वह नष्ट हो जाता है। व्रत के बीज के लिए हृदय को उर्वरा भूमि बनाना अपेक्षित है, अन्यथा व्रत फलीभूत नहीं होगा। अजीर्ण की अशंका से क्या कभी भोजन नहीं किया जाता ? किसी कारण से अजीर्ण होने पर उसे मिटाने का प्रयास किया जाता है। भविष्य में पुनः न होने का ध्यान रखा जाता है। वैसे ही व्रत-भंग की आशंका से उसे स्वीकार न करना उचित नहीं। हां, यह ध्यान और जागरूकता रहे कि व्रत का भंग न हो। बावजूद इसके, किसी कारण भंग हो जाए तो उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त की विधि भी है। जिस प्रकार कलइ आदि से मकान का नवीनीकरण होता है, मरम्मत करने से उसकी टूटफूट ठीक होती है, उसी प्रकार प्रायश्चित्त से व्रतों की विशुद्धि और व्रत-चेतना जागे - ३२७ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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