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________________ १३६ : उपासना : क्या : क्यों मैं एक जैन मुनि हूं। जैन उपासना पद्धति में मेरा विश्वास है। आप लोगों में से बहुत-से लोग अन्यान्य उपासना पद्धतियों में विश्वास करनेवाले हैं, पर यह कोई विवाद का विषय नहीं है। जिसको जो उपासना-पद्धति उपयुक्त लगे, वह उसे अपना सकता है। मूल बात है लक्ष्य-संसिद्धि की । वह जिस किसी उपासना पद्धति से होती हो, वह हमारे लिए उपादेय है, उपयोगी है। उपासना किसकी प्रश्न हो सकता है कि उपासना किसकी करनी चाहिए। इसका उत्तर तो सीधा-सा है - व्यक्ति को परमात्मा की उपासना करनी चाहिए । प्रभु का स्मरण करना चाहिए, पर मैं देखता हूं कि बहुत से लोग परमात्मा की उपासना करने के बजाय उससे सौदा करते हैं। आप सौदे की बात सुन चौंकें नहीं। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि वास्तविकता है। मैं पूछना चाहता हूं कि उपासना के प्रतिदान के रूप में धन, वैभव, पुत्र आदि की याचना करना क्या सौदा नहीं है। मेरी दृष्टि में यह खुला सौदा है। उपासना - जैसे पवित्र तत्त्व को दूषित करनेवाली मनोवृत्ति है। इससे उसका बहुत अवमूल्यन होता है। फिर बात यहीं समाप्त नहीं होती। अनेक व्यक्ति तो ऐसे भी देखने में आते हैं, जो याचना सफल न होने की स्थिति में अश्रद्धाशील बनकर परमात्मा को गालियां बोलने लगते हैं, प्रभु - विद्रोही बन जाते हैं। यद्यपि प्रत्युत्तर में परमात्मा गाली तो बहुत दूर, एक शब्द भी नहीं बोलता, पर यह निश्चित है कि इस प्रकार का व्यवहार अनुचित है। मेरी यह पुष्ट मान्यता है कि भौतिक सिद्धि और लालसा - पूर्ति के लिए परमात्मा की उपासना करना ही अज्ञान है । आप देखें, एक अनपढ़ किसान भी कभी भूसे के लिए खेती नहीं करता । खेती वह धान के लिए ही करता है। • ३२४ ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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