SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सकता है, जब हम उसकी आज्ञा का पालन करें । उसकी कोरी अर्चना का क्या मूल्य है ? आचार्य हेमचंद्र ने कहा - ' वीतराग ! तुम्हारी अर्चना की अपेक्षा तुम्हारी आज्ञा का पालन अधिक महत्त्वपूर्ण है । उसकी आराधना कल्याण के लिए होती है और उसकी विराधना अकल्याण के लिए। तुम्हारी आज्ञा यही है कि हेय का त्याग करो और उपादेय का संग्रहण करो । ' जरूरी है आत्म-निरीक्षण पर हेय का ज्ञान कैसे हो, जब आत्म-निरीक्षण ही नहीं होता ? मनुष्य जितना कुछ करता है, वह सब उपादेय नहीं है और जो नहीं करता है, वह सब हेय नहीं है। इसका विवेक आत्म-निरीक्षण से ही मिल सकता है। 'मैंने क्या किया, मुझे क्या करना है और वह कौन-सा कार्य है, जिसे मैं कर सकता हूं, पर नहीं कर रहा हूं'- 12 - इस व्यापक दृष्टि से जो अपने को देखता है, वही चक्षुष्मान उपासक है। ऐसा कौन व्यक्ति होगा, जिससे कभी भूल न हो? मनुष्य जब मोह में फंसा हुआ होता है, तब वह किसी को प्रिय मानता है, किसी को अप्रिय । किसी को प्रिय या अप्रिय मानने का अर्थ है-मानसिक विकास की अपूर्णता । परिपूर्णता की स्थिति में यह भूल नहीं होती, पर अपूर्णता में भूल होना बहुत संभव है । जो आत्म-निरीक्षण नहीं करता, वह दूसरों की भूल देखने में बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि होता है। साथ ही सिद्धहस्त होता है अपनी भूलों के साथ आंख-मिचौनी खेलने में। अपनी भूलों की अनुभूति उसे ही होती है, जिसमें अपने-आपको देखने की क्षमता हो । जिसे अपनी भूलों की अनुभूति ही न हो, वह उनकी आलोचना क्या करेगा ? जो अपनी आलोचना करता है, उसे दूसरों की आलोचना करने में रस नहीं रहता या बहुत कम रस रहता है। जो स्वयं से हुए असद्व्यवहार को समझ लेता है, वह उसके लिए क्षमा मांग सकता है। क्षमा मांगना सचमुच ही अमृत की धार बहाना है। इससे विष ही नहीं धुलता, मैत्री का महान प्रवाह भी चल पड़ता है। इसी व्रत की उपासना के लिए अणुव्रतआंदोलन के साथ मैत्री - दिवस जुड़ा हुआ है। मैत्री और अहिंसा कोई दो तत्त्व नहीं हैं | मैत्री के बिना अहिंसा नहीं होती और अहिंसा के बिना मैत्री का कोई अर्थ नहीं होता । अहिंसा - दिवस भी अणुव्रत आंदोलन का एक अंग है। • ३२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only ज्योति जले : मुक्ति मिले www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy